एक विनम्र घुटन
"आप सौरभ की मदर?"
रघुवीर सर अपना चश्मा ठीक करते हुए कहते हैं।
"जी सर।"
सौरभ की माँ कुछ हड़बड़ायी-सी कहती है।
"देखिये!आज से पाँच दिन पहले विज्ञान का प्रेक्टिकल था। कुछ विद्यार्थियों ने प्रयोगशाला से माचिस अपने पॉकेट में छिपायी और कक्षा में कुछ पेपर जला दिये। यह हादसा बड़ा रुप भी ले सकता था अगर घटना स्थल पर मिस शालिनी नहीं पहुँचतीं।"
रघुवीर सर आस-पास के माहौल पर निगाह डालते हुए कहते हैं।
"लेकिन सर मैं उस वक़्त कक्षा में नहीं था,मैं निशा के साथ निकल चुका था।"
सौरभ अपना पक्ष रखता हुआ अपनी मम्मी की ओर देखता है।
"आज भारत की जेलों में 70% ऐसे क़ैदी क़ैद में हैं जिहोंने कोई गुनाह नहीं किया बस गुनाहगार के साथ थे। सौरभ बेटा!तुम जिस उम्र से गुज़र रहे हो वहीं से तुम्हें अच्छे और बुरे दोस्तों की परख करनी है।"
रघुवीर सर सौरभ को समझाते हुए कहते हैं।
"सर,मैं उन बच्चों से मिलना चाहती हूँ जिन्होंने सौरभ को इस घटना का ज़िम्मेदार ठहराया है।"
सौरभ की माँ अपनी व्याकुलता दर्शाती है।
"घटना गंभीर थी,आप ख़ुद एक अध्यापिका हैं। सूरत की घटना को याद कीजिये,पंद्रह-सोलह साल की ऐसी उम्र होती हैं। जहाँ बच्चे दोस्तों के साथ ग़लत क़दम भी उठा लेते हैं। इस उम्र में उन्हें एक अच्छे दोस्त की ज़रुरत होती है। सौरभ कक्षा का होनहार बच्चा है, हम चाहते हैं वह दोस्तों की परख करना सीखे।"
मिस पिंकी अपनी सहभागिता दर्शाते हुए सौरभ की मम्मी से स्नेह की मुस्कान लिये मिलती हैं।
"हमें उम्मीद नहीं थी लापरवाही की। अगर कक्षा के अन्य बच्चे ऐसी घटना को अंजाम दे रहे थे तब आपको उनके ख़िलाफ़ रिपोट दर्ज़ करवानी चाहिए थी सौरभ।"
मिस शीला अपना कार्य ख़त्म करती हुई कहती हैं।
"सर आप ख़ुद देखिये आज घटना के पाँच दिन बाद मुझ पर इस तरह बेबुनियाद घटना का आरोप लगाया जा रहा है। यह सोची-समझी साज़िश है।"
सौरभ अध्यापक से विनम्र स्वर में कहता है।
"अरे!मिस शीला तेवर तो देखये महाशय के, ये हमें समझा रहे हैं।
भविष्य में ऐसी घटना पर तुरंत कार्यवाई करें। मुझे नहीं,सीधे प्रिंसिपल मैम को सूचित करें। नोटिस जारी करें इसे।"
सौरभ के इस तरह जवाब देने से रघुवीर सर आवेश में आ गये।
"जी सर।"
मिस शीला सौरभ के ख़िलाफ़ नोटिस जारी करते हुए कहती हैं।
"आजकल बच्चों में बर्दास्त करने की क्षमता नहीं रही, अहं बहुत पालने लगे हैं।"
वे सौरभ से हेड बॉय का ख़िताब छीनती हुई कहतीं हैं।
"मम्मी मैंने कुछ नहीं किया, आप देखती हो मैं विद्यालय और कोचिंग में व्यस्त रहता हूँ, हो सकता है तभी मेरा नाम लिया गया है।"
सौरभ माँ से अपना पक्ष रखते हुए कहता है।
"आज तुम्हारा जन्मदिवस है न। तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हें एक सबक़ सिखाया है तुम्हें परख करनी है,दोस्तों की... हूँ ।"
दोनों माँ बेटे की आँखें भर आती हैं। माँ सौरभ को अपने सीने से लगा लेती है।
"परन्तु मम्मी सर को मेरा भी पक्ष सुनना चाहिए था। वो मुझे ऐसी.... ।"
सौरभ अपनी घुटन जताता हुआ।
"कभी-कभी कुछ न सुनना ही सब बयान कर जाता है,शायद वे आपको इस ज़िम्मेदारी के लायक नहीं समझते,आप ग़लत नहीं हो,सही बन कर दिखाओ।"
© अनीता सैनी
प्रेरक लघुकथा जिसमें मित्रता को परखने का आग्रह किया गया है. वर्तमान परिवेश में बच्चों-किशोरों को मित्रों की परख होना ज़रूरी. विद्यालयों में बिगड़ते माहौल पर तंज़ कसती हुई लघुकथा जहाँ विद्यार्थियों का पक्ष सुनने की बजाय उन पर पूर्वाग्रहयुक्त फ़ैसले थोपने पर मंथन करने को कहती है.
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सार्थक प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
बहुत सुंदर और प्रेरक लघुकथा 👌👌
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
लाजवाब लघुकथा 👌👌👌
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.02.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3610 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
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सटीक एवं सार्थक सृजन....
ReplyDeleteसही कहा स्कूलों में टीचर आजकल बच्चों की बात पूरा नहीं सुनते और कक्षा में कई बार एक दो बच्चों की शरारत पर पूरे ही छात्रों को सजा दे देते हैं ऐसे में अच्छे बच्चे बहुत आहत हो जाते हैं और कभी कभी अपनी अच्छाई ही खो बैठते हैं....
छात्रों और शिक्षकों दोनो के लिए चिन्तनपरक संदेश देता सृजन....
बहुत लाजवाब।
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु.स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
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बहुत सार्थक लघु कथा ।
ReplyDeleteऐसी ही घटनाओं से होनहार बच्चे अवसाद में घिर जाते हैं और अपना नुकसान कर बैठते हैं कभी कभी तो पुरा भविष्य दांव पर लग जाता है ।
अध्यापकों का रवैया कई बार घातक सिद्ध होता है।
चिंतन परक कथा ।
सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित समीक्षा हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
Deleteसादर
बहुत सारगर्भित और उद्देश्यपूर्ण लघु कथा प्रिय अनीता | बाल मनोविज्ञान का सुंदर वर्णन , कथा का सशक्त पक्ष है |
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
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बहुत सारगर्भित लघुकथा,अनिता दी।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
चिंतन परक लघु कथा अनीता ,सादर स्नेह
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
सच जरुरी है परख अपने मित्रों की , नहीं तो लेने के देने पड़ते हैं और बाद में पछताना पड़ता है
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
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वाह!प्रिय सखी ,बहुत ही शिक्षाप्रद रचना 👌
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 14 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीय सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु.
Deleteसादर
बहुत सुंदर और संदेशपरक लघुकथा
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
लाजवाब और शिक्षाप्रद लघुकथा 👌👌
ReplyDeleteसुन्दर सृजन के लिए बधाई अनीता जी ।
सादर आभार आदरणीय मीना दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
इस लघुकथा ने एक पुरानी याद ताजा कर दी। उसे कहानी रुप में लिखने का मन है। जब अपने बच्चे के साथ अन्याय होता दिखे तब माँ की घुटन का अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। उस पर माँ शिक्षिका हुई तो आदर्श और ममता के टकराव में खुद भी घायल होती है और बच्चे को भी घायल कर देती है।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय मीना दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु.स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
Deleteसादर