विश्व में महामारी का दौर चल रहा था। भारत में भी वह अपने पैर पसार रही थी। प्रत्येक सौ वर्ष के बाद कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा था। १७२० में प्लेग ,१८२० में कॉलेरा, १९२० में स्वाइन फ्लू ,२०२० में कोरोना का प्रकोप।
चीन के वुहान शहर से निकलकर यह महामारी विश्व के ज़्यादातर देशों में फैल चुकी थी। इटली में चीन के मज़दूर ज़्यादा है। वहाँ इसने अपना क़हर ज़्यादा ढाया। भारत में इससे अब तक चार मौतें हो चुकी थीं। न्यूज़ पेपर, टीवी चैनल पर भी देश-विदेश की यही घटनाएँ। काफ़ी लोगों के वीडियो वायरल हो रहे थे जो इस वायरस से पीड़ित थे उन्हें देख मन सिहर उठता। ऐसे में किसी अपने को लोगों के बीच भेजना कितना कष्टदायी होता है। इसी स्थिति से जूझ रही थी जूही। वह नहीं चाहती थी कि घर का कोई भी सदस्य बाहर निकले। जैसे-तैसे करके महीने- बीस दिन में सब ठीक हो ही जाना था।
"आप आवेदन भेजकर देखें छुट्टी मिल जाएगी। ऐसी स्थिति में सफ़र करना ठीक नहीं है। "
जूही जब देखो एक ही रट लगाए जा रही थी। कभी झुँझलाती ख़ुद पर कभी पति पर।
रितेश जूही की बात काटता हुआ-
"मैंने यात्रा के लिये ज़रुरी सामान रख लिया है तुम और बच्चे घर से बाहर बिलकुल मत निकलना जब तक सब कुछ सामान्य नहीं हो जाता।"
रितेश को बार-बार पत्नी और बच्चों की फ़िक़्र सताये जा रही थी।
"कुछ और सामान चाहिए अभी बता देना, कल फिर मेरा निकलना होगा। तुमलोग भूल कर भी बाहर नहीं निकलना।"
"जब देखो एक ही रट लगाए जा रहे हो। हम बच्चे नहीं हैं। और आप कुछ न कुछ लेने बाहर जा रहे हो वह क्या?"
बेचैनी में सिमटी जूही अपने आप को सँभाल नहीं पा रही थी।
"अरे! मेरी फ़िक़्र मत करो। मैं सारी सावधानियाँ रखता हूँ।"
रितेश ने जूही की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा और फिर लापरवाही से टीवी का चैनल बदलने लगा।
"पापा आपको विदेश भी जाना है। क्या यह सही समय है?"
बड़े बेटे ने अपनी चिंता व्यक्त की।
"देखते है बेटा सरकारी आदेश पर हैं।"
रितेश उसाँस भरता हुआ कहता है।
"मम्मी को कैसे समझाओगे? कैसे जल रही है ग़ुस्से में। सुबह से एक शब्द मुँह से नहीं निकाला। आज मुझे भी नहीं डाँट रही है।"
दोनों मिलकर जूही की हँसी उड़ाते हैं।
"घर इतना बड़ा भी नहीं है कि मुझे कुछ सुनाई नहीं दे।"
जूही खाना बनाती हुई कहती है।
"अरे! हम तो कह रहे हैं तुमसे घर की रौनक है।
ख़ुशनसीब हूँ जो पत्नी की डाँट मिलती हैं।"
यह कहकर बाप-बेटे दोनों हँसने लगते हैं।
"हर बात का मज़ाक़ ठीक नहीं। आप अपनी छुट्टी बढ़वाइए न, एक बार फोन तो करो।"
जूही इस बात से उबर ही नहीं पा रही थी।
"अरे! यार जाना तो है ही आज नहीं तो कल। "
रितेश अपना सामान पैक करते हुए कहता है।
"आप कितने लापरवाह हो। आपको हमारी फ़िक़्र है और अपनी नहीं। आप ऐसे कैसे हो सकते हो?"
जूही सफ़र के लिये खाने का सामान पैक करती हुई बड़बड़ाती है और बाँधती है साथ में अनगिनत हिदायतों की पोटली।
जूही स्टेशन तक रितेश को सी-ऑफ़ करने आयी तो सारा शहर सन्नाटे में डूबा हुआ था। वे दोनों अपनी कार से स्टेशन पहुँचे थे। शाम के छह बज रहे थे। सड़कों पर इक्का-दुक्का वाहन ही नज़र आ रहे थे। सर्दी कमोबेश अब विदा हो चुकी है फिर भी रितेश ने सफ़ेद हाफ़ स्वेटर पहना हुआ था। कल प्रधानमंत्री ने देश में 'जनता कर्फ़्यू' का आह्वान किया है।
पति को विदाकर जैसे ही जूही कार में बैठती है तभी फ़ोन बजता है-
"मैम सर का फोन नहीं लग रहा,उन्होंने छुट्टी के लिए अप्लाई किया था वह सेंक्शन नहीं हुई, उन्हें अर्जेन्ट ड्यूटी पर पहुँचना है।"
जूही की आँखें भर आयीं वह क्यों नहीं समझ पायी रितेश की ख़ामोशी।
१७२० में प्लेग ,१८२० में कॉलेरा, १९२० में स्वाइन फ्लू ,२०२० में कोरोना का प्रकोप। हाँ ,अनीता जी ,आपने तो गौर करने योग्य बात कही हैं ,वैसे तो यकीनन इसे जानते सब हैं मगर आज आपका लेख पढ़कर इस बात पर ध्यान गया। प्रकृति हर सौ साल पर मानव को उनकी हदे याद दिलाने आ ही जाती हैं ,फिर भी हमें अक्ल नहीं आती। बेहद मार्मिक कहानी ,एक लाचारी मगर डयूटी तो डयूटी हैं ,सादर स्नेह आपको
व्यवस्था को गतिमान रखने के लिये समय की परीक्षा में खरे उतरने वाले ही श्रद्धा और सहानुभूति के पात्र बनते हैं। जीवन की सामान्य-सी बात को संदेशात्मक, अर्थपूर्ण और रोचक बनाती प्रशंसनीय लघुकथा।
१७२० में प्लेग ,१८२० में कॉलेरा, १९२० में स्वाइन फ्लू ,२०२० में कोरोना का प्रकोप।
ReplyDeleteहाँ ,अनीता जी ,आपने तो गौर करने योग्य बात कही हैं ,वैसे तो यकीनन इसे जानते सब हैं मगर आज आपका लेख पढ़कर इस बात पर ध्यान गया।
प्रकृति हर सौ साल पर मानव को उनकी हदे याद दिलाने आ ही जाती हैं ,फिर भी हमें अक्ल नहीं आती।
बेहद मार्मिक कहानी ,एक लाचारी मगर डयूटी तो डयूटी हैं ,सादर स्नेह आपको
सादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
Deleteसादर स्नेह
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24 -3-2020 ) को " तब तुम लापरवाह नहीं थे " (चर्चा अंक -3650) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीया दीदी चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
Deleteसादर
व्यवस्था को गतिमान रखने के लिये समय की परीक्षा में खरे उतरने वाले ही श्रद्धा और सहानुभूति के पात्र बनते हैं। जीवन की सामान्य-सी बात को संदेशात्मक, अर्थपूर्ण और रोचक बनाती प्रशंसनीय लघुकथा।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
Deleteसादर प्रणाम
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteघर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
कोरोना से बचें।
भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर आभार आदरणीय सर
Deleteसादर प्रणाम
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर
Deleteसादर प्रणाम