मन,मानव और मानवता का हेप्पीओलस के समूह का होना। यथार्थ नहीं मेरी एक मात्र कल्पना ही है।हुआ था विवाद मन, मानव और मानवता के मध्य। बुद्धि खेल रही थी यह खेल। मासूम मन बहक गया। मानव ख़ामोशी से इनके शिकंजे में फंसता गया। मानवता तार-तार बिखरती रही,अस्तित्त्व अपना तलाशती हुई। जद्दोजहद करती बुद्धि से विनाश के कगार पर बैठ गयी। सबसे प्रभावी होते हुए, हार कैसे गयी।आज इसी विडंबना के साथ लड़खड़ा रही है। चल क्या रही है वह भी थक गयी। शायद हार गयी बुद्धि के हाथों।लड़खड़ाती मानवता जब टूट रही थी तभी खिला था हिम्मत का पुष्प। प्रथम पुष्प खिला था पृथ्वी पर। वह वर्ष का अंतिम महीना ही था समय की समझ ने कहा वह १३ दिसंबर को खिला था। इंसान कब आया,कैसे आया; कहाँ से आया सब रहस्य है और अपने आप को मिटा फिर एक बार रहस्य बन रहा है। उसे पता है यह राह विनाश की तरफ़ है फिर भी चलता जा रहा है। मानवता उसे पुकार रही है। वह पूर्णतय: बुद्धि के गिरफ्त में आ चुका है। वह साजिशें रचती है मन के साथ मानवता को मिटाने की। शायद कामयाब भी हो रही है। मैं देख रही हूँ आज २०२० में उसे मरते हुए। वह कहीं नहीं है। मानव लगाता है मानवता का मुखौटा परंतु अहं की बरसात होते ही वह टूट जाता है। उस रोज़ भी ऐसा ही हुआ। मानवता मर गयी परंतु न जाने क्यों उसने हार नहीं मानी। वहीं खिला था वह सुंदर फूल हेप्पीओलस के समूह का। मन -बुद्धि का गहरा दोस्ताना है। सलाह समझाइश होती रहती है।
"मैं स्वर्ग-सा साम्राज्य तुम्हें सौंप इस लोक का राजा बना दूँगी परंतु तुम्हें मारना होगा मानवता को। "
बुद्धि मानव का उत्साहवर्धन करती हुई ग़ुरुर से अपना वर्चस्व फैलती है। समय के समुंद्र पर सजता है अखाड़ा इनका। चारों ओर गूँजता है एक ही स्वर। मारो-मारो! .... एक दूसरे की हत्या,हत्या मानवीय मूल्यों की अब आम बन गयी। विधि कुछ भी कहे। ख़ुन बहना चाहिए। बुद्धि का यही संदेश था मानव को।
"जब से सुविधा मिली मेरे सपनों को पँख मिले। जाने क्यों मेरा जीवन सिमट गया।"
लाचार मानव मन से टकरा गया और दोनों ने यही प्रश्न बुद्धि से किया। सजग भाव भरी सभा में कुछ जागरुक से लगे। परन्तु पाँव अब भी कुछ लड़खड़ाये हुए थे। यहीं बुद्धि ने जाल अपना बुना।
" कहती हूँ मानव समझा मन को अपने,जीवन सिमट गया। कर हत्या मानवता की राजा धरा का कहलायेगा। सुंदर कन्या सुख की दूँगी तुझे थमा।"
अतृप्त मानव कुछ ललचाया राज्य और राजकुमारी के सुंदर स्वप्न में खोया। अहं के तंतु पर हो सवार युद्ध की भारी हुँकार। क्रोध की ज्वाला, मानवता पर विजय, द्वेष ने थपथपायी थी पीठ।बेटे के हाथों माँ की हत्या बुद्धि रच रही यही खेल। मानव के हाथों मानवता की हत्या रहस्य बना था यह गंभीर।
"सुख की पुत्री तृप्ति नहीं किसी लोक में, ठग रही बुद्धि पुत्र अवचेतन से चलो चेतन में विनाश की राह का है यह द्वार।"
मानव, मन और मानवता समझ चुके थे खेल बुद्धि का तभी कहा मानवता ने -
"मार सकती हो तुम हमें, हरा नहीं सकती हो तुम।"
समझ चुकी थी बुद्धि हराना है बहुत कठिन अन्य इन्द्रियों को दिया आदेश सभी से मिलकर मन, मानव और मानवता का किया शीश क़लम। मन मानव का रोया मानवता फिर भी मुस्कुरायी। तीनों की तलवार वहीं धरा पर देखते ही देखते सुमन हेप्पीओलस का वहीं खिल गया। मूल में मानव, तने में मन और पुष्प मानवता का खिल गया।
©अनीता सैनी
सार्थक सृजन।
ReplyDeleteसादर आभार सर
Deleteसुंदर प्रस्तुति, अनिता दी।
ReplyDeleteसादर आभार बहना
Deleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी 👌👌
ReplyDeleteसादर आभार बहना
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17 -3-2020 ) को मन,मानव और मानवता (चर्चा अंक 3643) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीया दीदी सम्मान और स्नेह हेतु.
Deleteसादर स्नेह
"मैं स्वर्ग-सा साम्राज्य तुम्हें सौंप इस लोक का राजा बना दूँगी परंतु तुम्हें मारना होगा मानवता को। "
ReplyDeleteहैप्पीओलस के फूल और मन मानव और मानवता
वाह!!!!
अद्भुत लाजवाब।
सादर आभार आदरणीय दीदी दी आपकी समीक्षा का हमेशा इंतजार रहता है स्नेह आशीर्वाद बनायें रखे.
Deleteसादर
वाह!सखी ,बहि सुंदर!
ReplyDeleteसादर आदरणीय आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनायें रखे.
Deleteसादर
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी
Delete"इंसान कब आया,कैसे आया; कहाँ से आया सब रहस्य है और अपने आप को मिटा फिर एक बार रहस्य बन रहा है। उसे पता है यह राह विनाश की तरफ़ है फिर भी चलता जा रहा है। "
ReplyDelete... यथार्थ पर आधारित गहन चिन्तन ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति अनीता जी ।
सादर आभार आदरणीया मीना दीदी सारगर्भित समीक्षा हेतु.
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनायें रखे.
सादर
मन, मानव, मानवता, बुद्धि, सुख,तृप्ति और प्रकृति के बीच अंतरसंघर्षों को एक रूपक के ज़रिये विश्लेषित करती मननशील रचना। अंततः मानवता ही उभरती है जीवन के नये-नये अर्थ लेकर।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर सारगर्भित समीक्षा हेतु. आशीर्वाद बनायें रखे.
Deleteसादर प्रणाम