"सांसों के चलने मात्र से झुलसता है क्या पीड़ा से हृदय?"
फुलिया अपनी गाय गौरी का माथा सहलाते हुए पूछती है।
"तुम्हें भी मालिक की याद तो आती होगी?
क्यों न आए?
मुझसे पहले वह तुझसे जो मिलने आता है।
बरामदे में पैर रखते ही पूछता है गौरी कैसी है?"
फुलिया गाय को चारा डालते हुए उसी के पास बैठ जाती है।
बातों-बातों में पता ही नहीं चला कब वह अतीत की गहराई में खो जाती है।
"इस बार उसके सकुशल घर पहुँचते ही तुझे पाँच सेर गुड़ खिलाऊँगी बस एक बार उसे घर तो आने दे।"
फुलिया बच्चे की तरह गौरी की पीठ सहलाती है शायद उससे मिन्नतें भी कर रही है पति के सकुशल लौटने की।
जब भी अंतस में कोई विचार उमड़ता,
बतियाने पहुँच जाती है गौरी के पास।
"अरे फुलिया!
बृजमोहन के साथ क्यों न चली जाती?"
पड़ोसन ने जले पर नमक छिड़कते हुए कहा।
"हाँ ठीक कहा काकी सा,
म्हारी ज़मीन-ज़ायदाद पर ताकि थे हाथ फेर लो।"
फुलिया ने झुँझलाते हुए कहा।
"अरे कभी तो सीधे मुँह बात किया कर।"
काकी सा मुँह बनाते हुए वहाँ से निकल गयी।
"सब जानू मैं एक से एक डेढ़ सयानी बैठी है गाँव में। फुलिया अनपढ़ वह क्या जाने हिसाब-किताब के बारे में ज़मीन-ज़ायदाद पर हाथ फेर सब अपने हिस्से में समेट लेंगे।"
फुलिया मन ही मन बड़बड़ाते हुए चौखट पर बैठ जाती है।
अविश्वास के चलते फुलिया गाँव में किसी से सीधे मुँह बात भी नहीं करती है।
अकेलेपन में उलझी-सी अकेली ही बड़बड़ाती रहती है। आज दर्द और भी गहरा हो गया,
मदद भी माँगे तो किससे?
गाँव में उठ रही तरह-तरह की बातों से फुलिया का मन बहुत बेचैन रहने लगा है।
आये दिन मज़दूरों के साथ हो रहे तरह-तरह के हादसे, कौन घर पहुँचेगा;
कौन नहीं?
वह दिन-रात इसी दर्द को पी रही है।
सास-ससुर के देहांत के बाद गौरी ही उसका एकमात्र सहारा है।
बृजमोहन अपने माँ-बाप की इकलौती संतान होने से फुलिया को कोई सहारा नहीं है।
कहने को गाँव है परंतु वह भी ज़रुरत के वक़्त ही दरवाज़ा खटखटाता है।
देर रात तक चौखट पर बैठे-बैठे कोरे आसमान को घूरती रहती है।
पिछली बार जब आया था तब एक फोन हाथ में थमाकर गया था।
चार तक नम्बर याद रखने की हिदायत दी थी उसने। एक गौरी के डॉक्टर का,
दूसरा अपना;
तीसरा मायके में भाभी का जो कभी फोन ही नहीं उठाती;
चौथा शहर वाली दीदी का।
अब काफ़ी दिनों से वह फोन भी पानी की हॉज़ में गिरा पड़ा है।
गाँव में कभी किसी से कभी किसी से मिन्नतें करती है पानी की हॉज़ से फोन निकलवाने का।
न वह हॉज़ ख़ाली हुआ, न फोन निकाल पायी।
इधर-उधर से उड़ती बातें सुन-सुनकर घर के बर्तन फोड़ती रहती है।
संशोधन- आमंत्रण की सूचना में पिछले सोमवार की तारीख़ उल्लेखित है। कृपया ध्यान रहे यह सूचना आज यानी 18 मई 2020 के लिए है। असुविधा के लिए खेद है। -रवीन्द्र सिंह यादव
स्त्री मन की चिन्ता को मर्मस्पर्शी भावों में शब्द चित्र सा उकेर दिया है...घर में अकेली रहती गाँव की न जाने कितनी ही फुलिया महामारी के संकटकाल में घुल रहीं हैं चिन्ता में...बहुत सुन्दर लघुकथा ।
ग्रामीण परिवेश में पनपते जज़्बात को क़रीने से पिरोती मर्मस्पर्शी लघुकथा। अनपढ़ व्यक्तियों को भी जीवन जीने का सलीक़ा ख़ूब आता है,वे अबोध नहीं होते बल्कि परिस्थितियों का मुक़ाबला करने की क्षमता विकसित कर लेते हैं और छद्म स्वार्थों,छलकपट आदि से स्वयं को बचाते हुए त्यागी जीवन का वरन करते हैं।फुलिया की मासूमियत उसके प्रति पाठक के मन में सहानुभूति उत्पन्न करने में सक्षम है। लघुकथा को अनावश्यक विस्तार से बचाना ज़रूरी है।
फुलिया जैसी न जाने कितनी औरतेंं आज इस महामारी में इसी तरह बेवस परेशान किसी अपने के इंतजार में आँखें गड़ाए बैठी हैं दिल को छू लेने वाली बहुत ही सुन्दर लघुकथा....।
ये मन है न मन ,इस मन को तो समझती ही है आप ,ये जरा जरा सी बात पर विचलित हो जाता है ,कही का गुस्सा कही निकाल देता है ,फुलिया का मन भी राह तकते हुए दुखी हो गया ,कहानी बहुत ही बढ़िया है बहना ,मेरी बहना लिखती ही बहुत अच्छा है ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'गरमी में जीना हुआ मुहाल' (चर्चा अंक 3705) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
संशोधन-
Deleteआमंत्रण की सूचना में पिछले सोमवार की तारीख़ उल्लेखित है। कृपया ध्यान रहे यह सूचना आज यानी 18 मई 2020 के लिए है।
असुविधा के लिए खेद है।
-रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आदरणीय चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
Deleteस्त्री मन की चिन्ता को मर्मस्पर्शी भावों में शब्द चित्र सा उकेर दिया है...घर में अकेली रहती गाँव की न जाने कितनी ही फुलिया महामारी के संकटकाल में घुल रहीं हैं चिन्ता में...बहुत सुन्दर लघुकथा ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया मीना दीदी लघुकथा की सार्थक समीक्षा करती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए.
Deleteसादर.
मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रया हेतु.
Deleteसुन्दर रचना अनीता जी |
ReplyDeleteशुक्रिया आपका का
Deleteभावप्रवण और मार्मिक प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती समीक्षा हेतु.
Deleteसादर
बहुत ही भावुक प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
Deleteसादर
ग्रामीण परिवेश में पनपते जज़्बात को क़रीने से पिरोती मर्मस्पर्शी लघुकथा। अनपढ़ व्यक्तियों को भी जीवन जीने का सलीक़ा ख़ूब आता है,वे अबोध नहीं होते बल्कि परिस्थितियों का मुक़ाबला करने की क्षमता विकसित कर लेते हैं और छद्म स्वार्थों,छलकपट आदि से स्वयं को बचाते हुए त्यागी जीवन का वरन करते हैं।फुलिया की मासूमियत उसके प्रति पाठक के मन में सहानुभूति उत्पन्न करने में सक्षम है। लघुकथा को अनावश्यक विस्तार से बचाना ज़रूरी है।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर सुंदर सारगर्भित मनोबल बढ़ाती समीक्षा हेतु.
Deleteसादर
फुलिया जैसी न जाने कितनी औरतेंं आज इस महामारी में इसी तरह बेवस परेशान किसी अपने के इंतजार में आँखें गड़ाए बैठी हैं दिल को छू लेने वाली बहुत ही सुन्दर लघुकथा....।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया सुधा दीदी लघुकथा का मर्म स्पष्ट करती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए.
Deleteसादर.
काश, बृजमोहन लौट आए. पूरी कहानी पढ़ते हुए बार बार मन यही कहता रहा. बहुत अच्छी कहानी.
ReplyDeleteसही कहा आदरणीया दीदी काश सकुशल लौट आए सभी के बृजमोहन.सादर आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
DeleteAdbhut
ReplyDeleteKheti Kare
सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
ये मन है न मन ,इस मन को तो समझती ही है आप ,ये जरा जरा सी बात पर विचलित हो जाता है ,कही का गुस्सा कही निकाल देता है ,फुलिया का मन भी राह तकते हुए दुखी हो गया ,कहानी बहुत ही बढ़िया है बहना ,मेरी बहना लिखती ही बहुत अच्छा है ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित समीक्षा हेतु.
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
घर घर यही कहानी रही कोरोनाकाल में, अच्छा चित्रण किया है आपने।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय मीना दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
SSC News thanks for sharing this information
ReplyDeletePls go through Local Update
ReplyDeleteand forward suggestions.
Dragon Fruit Farming
ReplyDeleteअरबी की खेती
ReplyDeleteस्ट्राबेरी की खेती
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