वृंदा
रात के अंतिम पहर में धुँधले पड़ते तारों में वृंदा ने अपनों को तलाशना चाहा। एक आवाज़ ने उसे विचलित किया।
"हक नहीं तुम्हें कुछ भी बोलने का। ज्ञान के भंडारणकर्ता हैं न,समझ उड़ेलने को। तुम क्यों आपे से बाहर हो रही हो। तुम्हें बोलने की आवश्यकता नहीं है।"
बुद्धि ने वृंदा को समझाया और बड़े स्नेह से दुलारा।
"क्यों न बोलें हम,तानाशाही क्यों सहें?"
मन ने हड़बड़ाते हुए कहा।
" समझ पर लीपा-पोतीकर ने से तुम्हें सुकून की अनुभूति होगी।"
बुद्धि ने अपनी गहराई से कुछ बीनते हुए कहा।
"बाक़ी लोगों का क्या वे गणना का हिस्सा नहीं है? यह सही समय था। तीनों सेनाओं को उलझाने का?"
गला रुँध गया मन की आँखें नम हो गई।
"वे सकारात्मकता दर्शाना चाहते थे।"
बुद्धि ने मन को हिम्मत बँधाई।
मन एक कोने में बैठकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा जैसे उसने किसी अपने को खोया हो।
"किससे अनुमति से सभा बुलाकर मातम मना रहे हो?"
अंदर से आवाज़ ने आवाज़ दी मन और बुद्धि दोनों सहम गए।
"ये वाकचातुर्य नासमझी को समझदारी का लिबास पहना रहे हैं।"
मन ने धीमे स्वर में अपना मंतव्य रखा।
"क्या करोगे तुम? "
"ज़्यादा ज्ञान मत बघारो।"
आवाज़ ने आक्रोशित स्वर में उसांस के साथ कहा।
"माफ़ी-माईबाप!”
बुद्धि ने मन की तरफ़ से आवाज़ से माफ़ी माँगी कभी आवाज़ न उठाने के वादे के साथ।
वृंदा की आँखें नम हो गई, उसने देखा!
और पाँच तारे आसमान में लुप्त हो गए।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-05-2020) को "शराब पीयेगा तो ही जीयेगा इंडिया" (चर्चा अंक-3893) पर भी होगी। --
ReplyDeleteसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु.
Deleteसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 05 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया दीदी संध्या दैनिक में मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु.
Deleteसादर
सराहनीय लघुकथा
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
सादर
प्रतीकों के माध्यम से एक अत्यंत पीड़ादाई विषय को कथानक के रूप में गढ़ा गया है। तीनों सेनाओं का इस्तेमाल कब,कहाँ,कैसे हो एक गंभीर प्रश्न है जिसे सरकार के निर्णय कौशल पर छोड़ दिया जाता है किंतु जब इनका इस्तेमाल छद्म उद्देश्यों के लिए किया जाने लगे तो यहाँ तर्क-वितर्क होने चाहिए। एक ओर जहाँ पाँच जांबाज़ सैनिकों की शहादत पर देश शोक में डूबा था तो दूसरी हवाई जहाज़ों से करोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए पुष्पवर्षा की जा रही थी। ऐसे घटनाक्रम देश के नागरिक और सैनिक को असमंजस की स्थिति में डालते हैं। मेरी राय में यह क़दम व्यर्थ की क़वायद थी जिसे इस लघुकथा में एक मार्मिक रूपक के ज़रिये भावुकता की पराकाष्ठा के साथ प्रस्तुत किया गया है।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
Deleteआशीर्वाद बनाये रखे.
सादर
बुद्धि वृन्दा मन आवाज आदि स्वयं ही पात्र स्वयं ही अभिनय और समसामयिकता पर खरी खरी...वाह!
ReplyDeleteअद्भुत अंदाज में बेहतरीन लघुकथा।
सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी आपकी प्रतिक्रिया ने मन मोह लिया. उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु तहे दिल से आभार.
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
Deleteसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
जो सितारे आसमान के समुंदर में खो गये उनके कदमों के निशान मात्र स्मृतियों में ही शेष न रहे काश कि ऐसा भी कुछ हो पाता!!
ReplyDeleteकोई भी प्रयास सकारात्मक है या नकारात्मक इसका तार्किक अन्वेषण दृष्टिकोण और परिस्थितियों के तराजू पर रखकर करती संदेशात्मक लघुकथा अनु।
सादर आभार प्रिय श्वेता दीदी आपने लघुकथा के मर्म और कथानक की बहुत सुंदर विस्तारपूर्वक विवेचना प्रस्तुत करते हुए अपना मत व्यक्त करते हुए लघुकथा का मान बढ़ाया है. मनोबल बढ़ाने के लिए ढेर सारा आभार.
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
अनिता दी,यह विडम्बना ही हैं कि जब पाँच जांबाज़ सैनिकों की शहादत पर देश शोक में डूबा था तब ही दूसरी तरफ हवाई जहाज़ों से करोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए पुष्पवर्षा की जा रही थी।
ReplyDeleteआपने प्रतीकों के माध्यम से लघुकथा को बहुत ही सुंदर अंजाम दिया हैं। बधाई।
सादर आभार आदरणीया ज्योति बहन जो आपने बिडंबना की ओर टिप्पणी के माध्यम से सबका ध्यान आकृष्ट कराया.
Deleteसादर.सारगर्भित समीक्षा हेतु आभारी हूँ दी.
स्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
वेदना से भरे मन की कशमकश का लाजवाब चित्रण ,लघु कथा इतना कुछ कह गई,कि सामायिक विसंगतियों को प्रश्न चिन्ह के घेरे में रख दिया ।
ReplyDeleteबस नमन शहादत हुए वीरों को
और साथ ही सेवा में लगे सपूतों को ।
सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी आपकी विस्तृत मनमोहक व्याख्या से लघुकथा का मर्म स्पष्ट हुआ.
Deleteआपका आशीर्वाद और स्नेह मेरे लेखन की ऊर्जा है.
सादर.
स्नेह आशीर्वाद यों ही बनाये रखे.
सादर
सामयिक परिस्थिति पर मन और बुद्धि के द्वन्द का बहुत सुन्दर चित्रण.
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिकिया हेतु.
Deleteसादर
अंतर्मन दिन रात उलझता हे नित नए द्वन्द... बढ़िया रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिकिया हेतु.
Deleteसादर