"भाई तुझे पता है! कुछ दिन पहले की ही ख़बर है। कोटा में नौवीं कक्षा के एक छात्र ने पबजी के चक्कर में सुसाइड कर ली।"
भानु मूवी के बीच में माधव को टोकते हुए कहता है।
"यार तुझे घर पर ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। मेरी माँ हिटलर है।"
माधव हड़बड़ाते हुए भानु को चुप्पी साधने की हिदायत देता है।
"भाई उसके पापा आर्मी में थे।"
भानु ने मायूसी से मुँह बनाते हुए कहा।
"मुझे पता है यार, मैंने उसी दिन देख ली थी यह न्यूज़ ...तुझे प्रॉब्लम है तो भाई दिल्ली चला जा, सरकार इलाज भी कर रही है।"
माधव बार-बार भानु का मुँह बंद करने का प्रयास कर रहा था।
"भाई लास्ट क्वेश्चन, क्या फोन को खिलौना बनाना ठीक है जिओ को फ्री ही क्यों किया ?"
भानु माधव के ओर पास खिसकता है,ठुड्डी के हाथ लगाए एक टक माधव को घूरता है,अपने प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा में।
"यह प्रश्न मोदी जी और अम्बानी से कर ना यार, यहाँ मत कर मेरी माँ मुझे गेम छोड़ मूवी भी नहीं देखने देगीं।"
माधव सोफ़े से उठता हुआ भानु पर झुँझलाता है।
"भाई सुन ना...।"
भानु सभी प्रश्न एक ही सांस में गटक जाता है।
राधिका रुम से सटी बालकनी में गमले की मिट्टी ठीक कर रही थी।
अचानक उसके हाथ वहीं रुक जाते हैं।
-अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुन्दर लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteकिशोर बच्चों की माँ को ये सब ध्यान रखना ही पड़ेगा आजकल पबजी जैसे गेम खेलकर किशोर किस तरह मानसिक कमजोर होकर सुसाइड जैसे फैसले ले रहे हैं.......
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सारगर्भित लघुकथा।
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी आपने सही कहा विषय नाज़ुक परंतु गंभीर है.किशोरावस्था का आरंभिक चरण
Deleteजटिलताओं से भरा होते हुए भी बच्चे का बेस होता है .
तहे दिल से आभार आपका सारगर्भित समीक्षा हेतु .
सादर
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक 3747)' पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बहुत शुक्रिया सर मंच पर स्थान देने हेतु .
Deleteसादर
बहुत सुंदर लघुकथा
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया दी 🙏
Deleteसुंदर लघुकथा
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर
Deleteछोटे बच्चे स्वभाव से जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं । अपनी शंकाओं का समाधान वे आरम्भ से ही घर में अपने बड़े भाई-बहन अथवा मित्रों में तलाशते हैं । अभिभावकों का दायित्व बढ़ जाता है इस अवस्था में ..इस संदेश को प्रेषित करती सुन्दर लघुकथा ।
ReplyDeleteमनोविज्ञान जैसे विषय पर विचार डालती सारगर्भित समीक्षा हेतु सादर आभार आदरणीय मीना दीदी .आभारी हूँ आपकी
Deleteसादर
गहरी चिंता लिये बेहतरीन लघु कथा ,साथ मे शिक्षाप्रद भी,बच्चों का मन नाजुक होता है ,उनके साथ बहुत ही समझदारी से काम लेना चाहिए ।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार आदरणीय ज्योति दीदी लघुकथा में आपके विचार सराहनीय है ब्लॉग पर आते रहे .
Deleteसादर