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Wednesday, 8 July 2020

अनुत्तरित प्रश्न

"बड़ी बहू हल्दी का थाल कहाँ है ?"


सुमित्रा चाची ने चिल्लाते हुए कहा।

हल्दी के रंग में डूबी साड़ी के पल्लू को ठीक करते हुए एक नज़र अपने गहनों पर डालते हुए कहा-

"ओह ! मति मारी गई मेरी, यहीं तो रखा है आँखों के सामने।"


पैर की अँगुलियों में अटके बिछुए से साड़ी को खींचते हुए क़दम तेज़ी से बढ़ाएँ । 


"सुमित्रा! बेटी का ब्याह है। बहू घर नहीं आ रही, यों आपा मत खो।"
 

बूढ़ी दादी पोती के ब्याह में ऐंठी हुई बैठी थी कि कोई उससे कुछ क्यों नहीं पूछता। दादी ने ऐंठन खोलते हुए मुँह बनाया। परंतु सुमित्रा चाची अनसुना करते हुए वहाँ से निकल गई। 

" दीदे फाड़-फाड़कर देखती ही रहोगी ? वहाँ चौखट पर कौन बैठेगा। सूबेदारनी अंदर ही घुसती आ रही है। विधवा की छाँव शुभ कार्य में शोभा देती है ?"

 सुमित्रा चाची दादी पर एकदम झुँझलाई।


"सुमित्रा... !"

गोमती भाभी की ज़बान लड़खड़ा गई। 

न वह, अंदर आई और न ही अपने क़दम पीछे खींच पाई। अपमान के ज़हर का घूँट वहीं खड़े-खड़े ही पी गई। क्षण भर अपने आपको संभालते हुए कहा-


" बड़ी बहू वो शगुन लाना भूल गई। आती हूँ कुछ देर में...।"

दर्दभरी मुस्कान और एक अनुत्तरित प्रश्न के साथ चौखट से लौट गई।


 ©अनीता सैनी 'दीप्ति'

22 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर ताना बाना बुना है लघुकथा का
    बेटी की शादी का माहौल परिवार जनों की हड़बड़ी
    बूढ़ी दादी का ऐंठना ...टोकना...हल्दी की रश्म में खिलखिलाती औरतें...। मनमस्तिष्क में एक चित्र सा उभर आया है......

    विधवा की छाँव शुभ कार्य में शोभा देती है क्या?"

    सचमुच आज भी हमारा समाज इस अन्धविश्वास से बाहर नहीं निकल पाया....।

    गोमती भाभी दर्दभरी मुस्कान बड़ी बहू को थमा जाती है एक अनुत्तरित प्रश्न के साथ फिर आने के वादे के साथ .
    अन्त में टीस सी पैदा होती है इस दर्दभरी मुस्कान से...
    लाजवाब लघुकथा ।

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय सुधा दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3743 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  3. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 09 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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    1. सादर आभार आदरणीय पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर

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  5. अभी कुछ कुप्रथाएं समाज में विद्यमान हैं एक नहीं कई सवालों के जवाब पूछती है आप की कथा
    बहुत बढ़िया लघुकथा

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    1. सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  6. बहुत कुछ सुधरना है अभी।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  7. अनिता दी,आज भी हमारे समाज में विधवा नारी के साथ दुर्व्यवहार ही होता है इस बात को रेखांकित करती सुंदर लघुकथा।

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    1. तहे दिल से आभार ज्योति बहन यों ही साथ बनाए रखे।
      सादर

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  8. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  9. बहुत सुंदर लघुकथा सखी 👌

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  10. बहुत ही संवेदनशील कथा अनीता जी, समाज आज भी ऐसी मानसिकता से नहीं उबर पा रहा है,

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    1. सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी

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  11. सदैव ही -औरतों ने ही औरतों का मान घटाया है | ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं कि एक नारी ही दूसरी को क्यों समझ नहीं पाती ?

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    1. आभारी हूँ आदरणीय रेणु दीदी यों ही साथ बनाए रखे।
      सादर

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