"पर्वत जल रहे थे तभी पत्थर पिघलने लगे। नदी का बहता पानी भी ठहर-सा गया था,न जाने क्यों अचानक पेड़-पौधे दौड़ने लगे और पक्षियों के पंख भी नहीं थे ममा,वे तड़प रहे थे। जंगली-जानवरों के पैर नहीं थे वे दौड़ नहीं पा रहे थे, पुकार रहे थे वे मुझे परंतु आवाज़ नहीं आ रही थी। आप मेरे स्वप्न में कहीं नहीं थे, पापा को पुकारा वो नहीं आए।पापा बदल गए ममा,वे क्यों नहीं आए।उनकी शिक्षा बुख़ार में जल रही थी, पुकार रही थी। उन्हें आना चाहिए था न ममा।"
दो दिन से बुख़ार से जूझ रही शिक्षा अचानक रात को बड़बड़ाते हुए उठती है और कहते हुए रोने लगती है।
अपने कलेजे के टुकड़े की ऐसी हालत देख मीता की आँखें भर आईं।
माथे पर गीली पट्टी रखकर शिक्षा को सुलाने का प्रयास भी विफल रहा।
बुख़ार ने शिक्षा के मन की सभी तहें खोल दीं जो वह कभी खेल-खेल में न कह पाई।
शिक्षा के व्याकुल मन की सीलन में मीता रातभर करवट बदलती रही।
©अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-08-2020) को "आदिदेव के नाम से, करना सब शुभ-कार्य" (चर्चा अंक-3802) पर भी होगी।
ReplyDelete--
श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु ।
Deleteबच्चों के अभिभावकों के साथ भावात्मक जु़ड़ाव को उकेरती बाल मनोविज्ञान के धरातल पर हृदयस्पर्शी लघुकथा । सशक्त और प्रभावी सृजनात्मकता । गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय मीना दी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लघुकथा को प्रवाह दिया। मर्मस्पष्ट करती प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभार आपका।
Deleteसादर
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
बहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
Deleteसादर
ममस्पर्शी लघुकथा
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Deleteसादर
बाल-मन के भावों का सुंदर चित्रण अनीता जी
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteबच्चों के मनोभाव पर आधारित बहुत ही सुन्दर लघुकथा...।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सुधा दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
मर्मस्पर्शी पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
हृदयस्पर्शी लघुकथा । हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
बहुत ही सुंदर लिखते हो आप।
ReplyDeleteपापा नहीं बदलते उनके हालात बदल जाते ।
शुभकामनाओं के साथ ।
सही कहा आपने। बहुत बहुत शुक्रिया आपका
Deleteसादर
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु ।
Deleteकई सन्देश समेटे हुऐ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर प्रणाम
बालमन के अन्तरद्वन्द को दर्शाती सुंदर लघुकथा प्रिय अनीता ।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार आदरणीय शुभा दी।
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
मार्मिक रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय अनिता दीदी ।
Deleteमर्मस्पर्शी लघु कथा पिता से दूरी या माँ से दूरी, किसी भी कारण से हो,चाहे भावात्मक दूरी हो, कोमल भावुक बाल मन अंदर तक आहत रहता है वो मुख से नहीं भी बोले पर अंतर्मुखी हो जाता है और किसी भी प्रक्रिया में उसके भाव कभी न कभी दिखने लगते हैं ।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील ।
सही कहा आपने आदरणीय कुसुम दीदी कभी न कभी ख़ामोशी जरुर टूटती और तब बहता है भावों का सैलाब।
Deleteसारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभार।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
मर्मस्पर्शी लघुकथा
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
मर्म को छूते हुए भाव ... स्वप्न के माध्यम से बहुत कुछ कहने का प्रयास ... हांफती हुई स्वप्न में जैसे ..
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर