फोन पर तय हुआ बैठक का स्थान व समय। स्थान सड़क किनारे रखी बेंच, समय रात आठ बजे नगरपालिका के लैंप पोस्ट के लट्टू की रोशनी में, निगरानी रखने के लिए रखे दो पेड़।
मनोरंजन का साधन होगी पोस्टर पर बनी कामकाजी महिला।
सुनसान सड़क शालीनमुद्रा में, साथ ही होंगे शीतल हवा के झोंके,हाँ इक्के-दुक्के तारे भी आसमान में रहेंगे।
साथ ही मौसम भी सुहावना हो, प्रकृति को भी नियमावली समझाई गई।
नौकरशाही ने समय की पाबंदी दर्शाते हुए पाँच मिनट पहले ही पहुँचना बेहतर समझा। हाथ में सफ़ेद पेपर का बंडल कपड़े एकदम ब्रांडेड टाई-बैल्ट। हाँ बैल्ट कुछ ढीला था नौकरशाही बार-बार उसे सँभालते हुए।
अनायास ही कुछ मच्छर भी सभा के सहभागी बनने को उतारु न चाहते हुए भी इर्द-गिर्द ही भिनभिनाते रहे। नौकरशाही मनमौजी रबैये में तल्लीन।
तभी एक शानदार गाड़ी के साथ लालफीताशाही का प्रवेश। काले रंग का सूट हाथ में एक शाही फ़ाइल रात के अँधरे में भी शाही चश्मा जैसे बतासे से मकोड़ा बाहर निकल रहा हो।
"समय की तल्खियाँ मेहरबान हैं जनाब हम पर आप कुछ देरी से पधारे "
नौकरशाही ने दाहिना हाथ आगे बढ़ाया। कुछ मच्छरों ने संगीत बजाया दोनों पेड़ हवा के साथ लहराए। पोस्टरवाली महिला कुछ सहमी-सी अपनी प्राकृतिक मुद्रा में आने का प्रयास करती हुई।
" समय का अंतराल ही भेद तय करता है जनाब।"
स्वागत में सजी महफ़िल का जाएज़ा लेते हुए लालफीताशाही।
"यहाँ मच्छरों के संगीत में अपनापन ज़्यादा ही बरसता दिखा।"
मच्छर आत्मग्लानि से कुछ दूर भिनभिनाने लगते हैं। पेड़ सलामी में झुकते हुए पोस्टरवाली महिला कुछ सँभलती हुई बेंच हल्की मुस्कान बिखेरती है। सड़क अभी भी ख़ामोश है।
"सहभागिता के लिए पारदर्शिता ज़रुरी है जनाब,लोकतंत्र की यही विशिष्टता है।"
नौकरशाही ने अपनी सजगता दर्शाते हुए कहा। मच्छरों ने संगीत और तेज़ किया, पेड़ मुस्कराए और पोस्टरवाली महिला सहज मुद्रा में।
"अनुचित हस्तक्षेप पॉलिसी के अंतर्गत नहीं।"
लालफीताशाही का रुख़ लाल हुआ तब कुछ लाल फीते कसे और बाँधे गए।सड़क का सर पैरों से कुचला उसे धन के देवता कुबेर को सौंपा गया।बेंच को नकारा गया, पोस्टरवाली महिला से कामकाज छीना गया। हवा को कुछ हद तक लताड़ा गया और उसे निन्न्यानवे साल के लिए लीज़ पर रखा गया।
पेड़ों की सलामी पर कुछ हद तक प्रसन्नता दर्शाई गई। मच्छरों पर हायर एंड फायर का शख़्त नियम नियमावली में मार्क किया गया। बैठक का मंतव्य अब तक सभी की समझ से परे था।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-09-2020) को "दास्तान ए लेखनी " (चर्चा अंक-3819) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
वाह ! बहुत अच्छा प्रयोग। कहानी में निर्जीव वस्तुओं के मानवीकरण ने अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया है। गंभीर व्यंग्य है, हास्य वाला व्यंग्य नहीं है। आपके लेखन कौशल्य का बेहतरीन नमूना।
आ अनीता सैनी जी, आपने व्यंग्य की विधा के चित्रण शैली में एक अनूठा प्रयोग किया है। शिल्प अद्भुत है। प्रकृति को व्यंग्य के विम्बों में गूंथना बिल्कुल नया है। हार्दिक साधुवाद! आपका नाम मैने अपने ब्लॉग के रीडिंग लिस्ट में जोड़ दिया है। आप भी मेरा ब्लॉग का लिंक: marmagyanet.blogspot.com अपने रीडिंग लिस्ट में जोड़ दें। आप मेरे ब्लॉग की अन्य रचनाओं पर भी अपने बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएँ। आप इस लिंक पर जाकर अमेज़न किंडल पर प्रकाशित मेरे कविता संग्रह "कौंध" को पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं। लिंक: https://amzn.to/2KdRnSP इस लिंक पर मेरे यूट्यूब चैनल पर मेरी आवाज में मेरी कविताओं और कहानियों का पाठ देखें और सुनें, चैनल को सब्सक्राइब करें, यह बिल्कुल फ्री है। https://youtu.be/Q2FH1E7SLYc ब्रजेन्द्रनाथ
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-09-2020) को "दास्तान ए लेखनी " (चर्चा अंक-3819) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
वाह ! बहुत अच्छा प्रयोग। कहानी में निर्जीव वस्तुओं के मानवीकरण ने अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया है। गंभीर व्यंग्य है, हास्य वाला व्यंग्य नहीं है। आपके लेखन कौशल्य का बेहतरीन नमूना।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार आदरणीय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अनमोल है। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर
निःशब्द हूँ
ReplyDeleteआपकी लेखन शैली गज्जब
सटीक प्रहार
तहे दिल से आभार आदरणीय अनीता दी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को विस्तार मिला। बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
वाह
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
गजब मतलब गजब!!
ReplyDeleteतंज और व्यंग्य अपनी पराकाष्ठा पर हैं ,
शब्द जैसे हवा कि हिलौर हो।
शानदार प्रयोगात्मक शैली , बिम्ब अद्भुत प्रतीक बेमिसाल।
तहे दिल से आभार आदरणीय कुसुम दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।कभी-कभी शब्द नहीं मिलते आभार व्यक्त करने के लिए।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर
वाह !! बहुत खूब !! बेहतरीन !!!
ReplyDeleteअद्भुत प्रयोगत्मक शैली ।
कृपया"प्रयोगात्मक शैली" पढ़ें ।
Deleteतहे दिल से आभार आदरणीय मीना दी छोटी बहन पर स्नेह यों ही बनाए रखे। आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा ।
Deleteसादर
आ अनीता सैनी जी, आपने व्यंग्य की विधा के चित्रण शैली में एक अनूठा प्रयोग किया है। शिल्प अद्भुत है। प्रकृति को व्यंग्य के विम्बों में गूंथना बिल्कुल नया है। हार्दिक साधुवाद!
ReplyDeleteआपका नाम मैने अपने ब्लॉग के रीडिंग लिस्ट में जोड़ दिया है। आप भी मेरा ब्लॉग का लिंक: marmagyanet.blogspot.com अपने रीडिंग लिस्ट में जोड़ दें। आप मेरे ब्लॉग की अन्य रचनाओं पर भी अपने बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएँ।
आप इस लिंक पर जाकर अमेज़न किंडल पर प्रकाशित मेरे कविता संग्रह "कौंध" को पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं।
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https://youtu.be/Q2FH1E7SLYc
ब्रजेन्द्रनाथ
आभारी हूँ आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया से लेखन को प्रवाह मिला। आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर
वाह अद्भुत.. बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार बहना मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
अद्भुत विम्बों से सजा लाजवाब व्यंग...निर्जीव वस्तुओं के मानवीकरण पर उत्कृष्ट सृजन....
ReplyDeleteअनंत शुभकामनाएं एवं बधाई अनीता जी!
तहे दिल से आभार आदरणीय सुधा दी आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर
सटीक व्यंग्य
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteरोचक
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
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