मन की वीथियों से झाँकती स्मृतियाँ कहतीं हैं कि वे क़ैद क्यों है? कुछ प्रश्न हमेशा के लिए प्रश्न ही रहते हैं,वे तलाशते हैं उत्तर और कहते हैं उत्तर कहाँ हैं?
ऐसी ही कुछ स्मृतियाँ आपसे बाँटना चाहती हूँ।
शायद मन का कुछ भार कम हो।
राजस्थान में शेखावाटी के टीले, उन टीलों में दफ़्न है वे पदचाप।
पदचाप जिन्होंने कई ऊँटों को जीवनदान दिया। पशुओं की सेवा को अपना धर्म बनाया।जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी काफ़ी दूर तक निकल पड़ते वे पदचाप पशुओं के इलाज हेतु। थकान जैसा शब्द उनके लिए बना ही नहीं था।एक आलोक था चेहरे पर आवाज़ में उछाह।
माँ एक आवाज़ के साथ उनका आदेश पूरा करती। चाहे वह चाय-पानी हो या खाना बनाना या पशुओं को चारा डालना हो।
पशुओं के लिए पानी का स्रोत उस स्रोत के बग़ल में ही बैठते थे।उस रास्ते से गुज़रने वाला कोई भी व्यक्ति या पशु कभी भी भूखे पेट नहीं लौटता। ऐसे नेक दिल इंसान थे मेरे दादा जी।
मैं स्वयं से पूछती हूँ कि क्या शब्दों से किसी की हत्या हो सकती है? उत्तर कुछ उलझा-सा मिलता है और उसी उत्तर में उलझ जाती हूँ मैं।
परंतु कैसे ?
हमें एहसास नहीं होता की हमारे शब्दों की वजह से सामनेवाला व्यक्ति ज़िंदगी से हार चुका है। किसी के लिए कुछ शब्द सिर्फ़ शब्द होते तो किसी के लिए वही शब्द बहुत गहरा ज़ख़्म बन जाते हैं। पिलानेवाला बेफ़िक्री से पिला जाता है शब्दों में ज़हर का घूँट और पीनेवाले का जीवन ठहर जाता है।
मेरे दादा जी पेशे से पशु चिकित्सक थे। प्रकृति और पशु-पक्षियों से अथाह प्रेम उन्हें भीड़ से अलग पहचान दिलाता है। वे बिन फीस लिए पशुओं का इलाज करते थे।आस-पास के पचास गाँव से लोग उनके पास अपने पशुओं के इलाज हेतु आया करते थे। बहुत ही नाज़ुक मन के नेक दिल इंसान थे। परंतु थे बड़े स्पष्टवादी।
झूठ फ़रेब राजनीति से कोसों दूर। छोटे बच्चे की तरह मासूमियत शब्दों से ज़्यादा व्यवहार में झलकती थी। कई क़िस्से ऐसे है जो भुलाए नहीं भूलते-
आज जहाँ सभी माता-पिता अपनी लड़कियों की शादी करते वक़्त ज़मीन-जाएदाद और पैसा देखते हैं वहीं मेरे दादा जी मेरी सगाई के वक़्त मुझसे कहते हैं-
"थारे ख़ातिर म्हारे से ज़्यादा ज़मीनवाला घर कोन्या देखा ताकि थान कम काम करना पड़ेगा ससुराल में।"
कहते-कहते गला रुँध जाता और कहते-
"सीता छोटो-सो आँगन है तने ज़्यादा झाड़ू-पौंछा भी कोनी करना पड़ेगा।"
इतना मासूम मन था उनका।
मेरी शादी से पहले ही मेरी सास से झगड़कर आ गए।
कहते -
" म्हारी छोरी घर को काम कोनी करेगी बहुत दुबली और कमज़ोर है।"
शायद वे मेरे लिए तमाम ख़ुशियाँ बटोरना चाहते थे।
कभी-कभी सोचती हूँ कोई किसी की इतनी फ़िक़्र भी कर सकता है क्या ?
और मैं नासमझी की टोकरी कंधों पर लिए समझदारी को थामे नासमझी ही बाँटती फिरती।
जब बिट्टू तीन-चार महीने का था तब वे मुझसे कहते-
" सीता! बिट्टू को मेरे पास सुला दे।"
और मैं ग़ुस्सा करती हुई कहती-
" नहीं दादा जी आप इसे दबा देंगे, कहीं गिरा देंगे यह रोने लगेगा।"
जिसने इतने बच्चों का पालन-पोषण किया। उससे ही अगले एक मिनट में बच्चों का पालन-पोषण करना सिखा देती। पता नहीं बिट्टू से उनका स्नेह ज़्यादा था या मेरी ममता।
उसी समय कुछ ऐसा घटित हुआ कि हमारा अगले एक वर्ष तक मिलना नहीं हुआ।
उसी दौरान दादा जी को ब्रेन हेमरेज हो गया।एक अस्सी साल के व्यक्ति को क्या समस्या सताएगी कि उसे ज़िंदगी से ऐसे और इतना जूझना पड़े।
सुनने में आया कि बहुत ही नज़दीक के किसी रिश्तेदार ने शब्दों का बहुत गहरा आघात दिया जिससे वे टूट गए।जीवन के उस पड़ाव पर वे किसी से कुछ कह न सके। मन की घुटन जब शब्द में नहीं ढल पाती तब फटतीं हैं दिमाग़ की नसें,उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
बड़ी माँ कहतीं हैं -
"उस रात तुम्हारे दादा जी पूरी रात सीता-सीता पुकार रहे थे।"
वह रात उनकी आख़िरी रात थी।
काश आख़िरी बार मैं अपना नाम अपने दादा जी के मुँह से सुन पाती।
सुन पाती कि वे क्या कहना चाहते हैं मुझे?
उनके देहांत की ख़बर मुझे काफ़ी दिनों बाद पता चली।
मन होता है मैं उस व्यक्ति से पूछूँ कि ऐसा क्या कहा कि चंद शब्दों से एक व्यक्ति जीवन छोड़ गया।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सच में ऐसा होता है प्रिय अनिता ! खास तौर पर किशोरावस्था के बच्चों के साथ और बहुत उम्रदराज़ बुजुर्गों के साथ बात करने में शब्दों का प्रयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए।
ReplyDeleteदिल से आभार आदरणीय मीना दी मनोविज्ञान पर आधारित आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-12-2020) को "रवींद्र सिंह यादव जी को बिटिया के शुभ विवाह की हार्दिक बधाई" (चर्चा अंक-3903) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सादर आभार आदरणीय सर चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
हृदयस्पर्शी संस्मरण अनीता ! शब्दों की माला में पिरोकर दादाजी का कृतित्व और व्यक्तित्व दोनों को गूंथ कर पाठक को उस समय में ले जाकर खड़ा कर दिया जो दादाजी और उनकी सीता ने एक साथ व्यतीत किया था ।
ReplyDeleteदिल से आभार आदरणीय मीना दी मेरे मन में छिपे गुड़ रहस्य को जानते हुए प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसादर
प्रिय दी!आपने दादाजी को याद करते हुए बहुत ही भावपूर्ण शब्द चित्र उकेरा है शब्द नहीं क्या लिखूं ?आँखें नम हो गयी , आज शब्दों का आभाव सा लगा बीते पल आँखों के सामने बिखर पड़े उनका सपना था आप ज़िंदगी में कुछ ऐसा करो की उनका नाम रोशन हो.मेरी आँखों को भी दिखाया था डॉ. बनने का सपना.कमी मैंने भी नहीं छोड़ी शायद नियति के मन में कुछ खोट थी .....बहुत ही सुन्दर ह्रदय स्पर्शी .
ReplyDeleteदिल से आभार प्रिय कविता हमेशा ख़ुश रहो।
Deleteमंज़िल नहीं बदली है तुम्हारी
रास्ते ने रुख़ बदला है चलती रहो।
बस हिम्मत नहीं हारना।
तुम्हारी प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।बीस साल पीछे पहुँच गई। तुम्हारे और दादा जी के साथ 😊।
हंसती खिलखिलाती रहाकर।
लिखती रहें इसी तरह।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteहृदयस्पर्शी
ReplyDeleteमन का बोझ हल्का करना आवश्यक पर करे किससे
बहुत बहुत शुक्रिया दी आपकी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।
Deleteअब पन्ने साथी बन गए है दी दिल खोलकर कहा करो।
ख़ुश और दोनों बँटेगें।
सादर
हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteबहुत खूब संस्मरण आप ने शब्दों से अतीत के चित्र उकेरे हे
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteआपका संस्मरण पढ़कर आँखे नम हो गयी ।
ReplyDeleteसचमुच संवेदनशील हृदय शब्दबाणों को झेल नहीं पाता खासकर अपनोंं के....जिनके लिए अपना जीवन लगाया होता है।
दादाजी की सीता साहित्य सेवा कर उनका नाम रोशन कर रही है।
बहुत ही हृदयस्पर्शी संस्मरण।
दिल से आभार प्रिय दी आपकी प्रतिक्रिया से मन हर्षितकर दिया।सृजन सार्थक हुआ। आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर
बहुत सुंदर अनीता।
ReplyDeleteधटनाओ को ज्यों का त्यों पेपर पर उतरना कोई आपसे सीखे।विनम्रता जब विरासत में मिलती है व्यक्ति और निख़र जाता है।
दादा जी नेक दिल इंसान थे।आज वह बहुत ख़ुश होंगे।
लिखती रहो।
दिल से आभार आपका ...आपका प्रेम और आशीर्वाद यों ही बना रहे। आपकी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।
Deleteख़ुश रहे सेहत का ख़्याल रखे।
सादर
हृदय स्पर्शी! परत दर परत खुलती सादगी , अविस्मरणीय पल जीवन के हृदय में सहेजें ,और उकेर दिया पन्नों पर ,
ReplyDeleteबहुत सुंदर.. बहुत बहुत सुंदर।
दिल से आभार प्रिय दी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बड़ी अनमोल होती है।सृजन सार्थक हुआ।आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर