सावन महीने के दूसरे सोमवार की घटना है, संजू और उसकी सास उस रोज़ सुबह-सुबह शिवालय में जल चढ़ाने जातीं हैं। एक दिन मंदिर में पार्वती माँ उनको मिलती हैं, कॉलोनी की औरतें उन्हें इसी नाम से पुकारतीं हैं।
”आ बैठ ममता! मंदिर में कुछ देर ठहरने से मन्नतें पूरी होतीं हैं, कुछ देर प्रभु की शरण में बैठना भी सुकून दे जाता है। देखो! तुम्हें कहना ठीक तो नहीं लगता, अपनी है सो कह देती हूँ।”
मंदिर की सीढ़ियों पर पार्वती माँ के साथ संजू और उसकी सास बैठ जातीं हैं।
”उस रोज़ तुम्हारे घर की चाय पी थी।”
पार्वती माँ कुछ ठहर जातीं हैं।
”अरे वो! बहू ने बनाई थी, बड़ी अच्छी चाय बनाती है म्हारी संजू।”
संजू की सास चहकते हुए कहती है।
” वो तो ठीक है परंतु मैं यों कहूँ, उसमें जले दूध की गंध आ रही थी; यों दूध जलाना-उफानना ठीक नहीं।मान्यता है कि शुभ नहीं होता।”
पार्वती माँ दान में मिले सीदे की पोटली अलग-अलग करतीं हुईं कहतीं हैं।दोनों सास-बहू के माथे पर अपमान की सलवटें उभर आईं।
”ठीक है फिर चलते हैं, पार्वती माँ फिर कभी फ़ुरसत में बात करेंगे।”
संजू की सास उठने का प्रयास करती है।
”अरे नहीं! बैठ तो ज़रा।”
पार्वती माँ हाथ पकड़कर संजू की सास को वहीं बैठाती है।
”देख घर की बात है तब कहूँ, घर में चप्पलें ठीक तरह तरतीब से रखी रहनी चाहिए और चप्पल पर चप्पल बड़ा अपशकुन होता है, देख! पायदान को रोज़ झाड़ें और दहलीज़ पर हल्दी-कुमकुम के छींटे दिया कर। एक और बात
बहू को थोड़ा रोकती-टोकती रहा कर, रसोई में बर्तनों की ज़्यादा आवाज़ ठीक नहीं। बहू सुशील है परंतु कुछ संस्कार भी हों तो सोने पे सुहागा।”
अब पार्वती माँ के कलेज़े का भार कुछ कम हुआ और वे अपने आपको हल्का महसूस करने लगी, लंबी और चैन की सांस भरी।एक पल के लिए,
संजू और उसकी सास का मन भारी हो गया। दोनों के पैरों को जैसे जड़ों ने जकड़ लिया हो। संजू ने सोचा यह एक बार घर आई और पूरा निरीक्षण का पिटारा हमारे ही सामने खोल दिया। सास जिस बहू की तारीफ़ करते नहीं थकती, कॉलोनी में अब क्या कहेगी?
” पहले पहर ही मंदिर में आकर बैठ जाओ, कुछ देर बच्चों को भी सँभाल लिया करो।”
पार्वती माँ के बेटे की बहू हवा की तरह आती है और बच्चे को उसकी गोद में थमा उसी गति से वापस चली जाती है। तीनों उसका मुँह ताकतीं रह जातीं हैं।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
वाह !!
ReplyDeleteसटीक लघुकथा । अत्यंत सुन्दर और सीखप्रद संदेश लिए लाजवाब सृजन ।
सादर आभार आदरणीय मीना दी।
Deleteबहुत अच्छी लघुकथा है यह आपकी अनीता जी । सचमुच अधिकांश लोगों के लिए पर उपदेश कुशल बहुतेरे ही होते हैं ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय जितेंद्र जी।
Deleteसादर
उपयोगी और प्रेरक संस्मरणनुमा लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-02-2021) को "प्रणय दिवस का भूत चढ़ा है, यौवन की अँगड़ाई में" (चर्चा अंक-3977) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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"विश्व प्रणय दिवस" की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
क्या बात है ! बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गगन शर्मा जी सर।
Deleteसादर
सुन्दर लघु कथा की रचना मुग्ध करती है शुभकामनाओं सह।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय शांतनु सान्याल जी सर।
Deleteसादर
सटीक प्रहार किया है
ReplyDeleteसुंदर कथा
दिल से आभार आदरणीय अनीता सुधीर जी।
Deleteसादर
ऐसा ही होता है..बेहतरीन कहानी..
ReplyDeleteसादर प्रणाम
बहुत बहुत आभार हूँ सखी।
Deleteसादर
जिनके घर में उनकी नहीं चलती वो दूसरे को समझने निकल पड़ते हैं।बहुत सुंदर संदेश देती कहानी प्रिय अनीता जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय कामिनी जी।
Deleteसादर
बहुत सार्थक लघु कथा
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय मनोज जी।
Deleteसादर
अपना घर संभलता नहीं दूसरों को उपदेश देने सरल है । बढ़िया लघुकथा
ReplyDeleteदिल से आभारी हूँ आदरणीय संगीता स्वरुप जी।
Deleteसादर
असलियत से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए क्योंकि एक दिन सबको खबर हो ही जानी है
ReplyDeleteदूसरों को ज्ञान देने वाले मुंह की खाते हैं एक दिन
बहुत सटीक
आभारी हूँ आदरणीय कविता रावत जी।
Deleteसादर
अक्सर ऐसा ही होता है दूसरे की कमियाँ गिनवा कर अपने मन को संतोष मिलता है, क्योंकि हम अपनी कमियाँ दूर नहीं कर पाते हैं ,मजबूरी इंसान से क्या क्या नही करवाती है , बहुत ही सुंदर रचना अनिता जी ,बधाई हो
ReplyDeleteदिल से आभार आदरणीय ज्योति जी।
Deleteसादर
वाह ! कहानी के अंत में तो मजा आ गया !
ReplyDeleteदिल से आभार आदरणीय मीना दी।
Deleteसादर
पर उपदेश कुशल बहुतेरे...सही बात है ..लोग अपने पे नहीं दूसरों पे ज्यादा ध्यान देते हैं...दूसरों की कमियां निकालते हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक लघुकथा।
सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार आदरणीय सुधा जी।
Deleteसादर