Friday, 12 February 2021

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

     


           सावन महीने के दूसरे सोमवार की घटना है, संजू और उसकी सास उस रोज़ सुबह-सुबह शिवालय में जल चढ़ाने जातीं हैं। एक दिन मंदिर में पार्वती माँ उनको मिलती हैं, कॉलोनी की औरतें उन्हें इसी नाम से पुकारतीं हैं।

     ”आ बैठ ममता! मंदिर में कुछ देर ठहरने से मन्नतें पूरी होतीं हैं, कुछ देर प्रभु की शरण में बैठना भी सुकून दे जाता है। देखो! तुम्हें  कहना ठीक तो नहीं लगता, अपनी है सो कह देती हूँ।”

मंदिर की सीढ़ियों पर पार्वती माँ के साथ संजू और उसकी सास बैठ जातीं हैं।

   ”उस रोज़ तुम्हारे घर की चाय पी थी।”

पार्वती माँ कुछ ठहर जातीं हैं।

   ”अरे वो! बहू ने बनाई थी, बड़ी अच्छी चाय बनाती है म्हारी संजू।”

संजू की सास चहकते हुए कहती है।

   ” वो तो ठीक है परंतु मैं यों कहूँ, उसमें जले दूध की गंध आ रही थी; यों दूध जलाना-उफानना ठीक नहीं।मान्यता है कि शुभ नहीं होता।”

पार्वती माँ दान में मिले सीदे की पोटली अलग-अलग करतीं हुईं  कहतीं हैं।दोनों सास-बहू के माथे पर अपमान की सलवटें उभर आईं।

   ”ठीक है फिर चलते हैं, पार्वती माँ फिर कभी फ़ुरसत में बात करेंगे।”

संजू की सास उठने का प्रयास करती है।

   ”अरे नहीं! बैठ तो ज़रा।”

पार्वती माँ हाथ पकड़कर संजू की सास को वहीं बैठाती है।

   ”देख घर की बात है तब कहूँ, घर में चप्पलें ठीक तरह तरतीब से रखी रहनी चाहिए और चप्पल पर चप्पल बड़ा अपशकुन होता है, देख! पायदान को रोज़ झाड़ें और दहलीज़ पर हल्दी-कुमकुम के छींटे दिया कर। एक और बात

बहू को थोड़ा रोकती-टोकती रहा कर, रसोई में बर्तनों की ज़्यादा आवाज़ ठीक नहीं। बहू सुशील है परंतु कुछ संस्कार भी हों तो सोने पे सुहागा।”

अब पार्वती माँ के कलेज़े का भार कुछ कम हुआ और वे अपने आपको हल्का महसूस करने लगी, लंबी और चैन की सांस भरी।एक पल के लिए,

संजू और उसकी सास का मन भारी हो गया। दोनों के पैरों को जैसे जड़ों ने जकड़ लिया हो। संजू ने सोचा यह एक बार घर आई और पूरा निरीक्षण का पिटारा हमारे ही सामने खोल दिया। सास जिस बहू की तारीफ़ करते नहीं थकती, कॉलोनी में अब क्या कहेगी?

     ” पहले पहर ही मंदिर में आकर बैठ जाओ, कुछ देर बच्चों को भी सँभाल लिया करो।”

पार्वती माँ के बेटे की बहू हवा की तरह आती है और बच्चे को उसकी  गोद में थमा उसी गति से वापस चली जाती है। तीनों उसका मुँह ताकतीं रह जातीं हैं।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

30 comments:

  1. वाह !!
    सटीक लघुकथा । अत्यंत सुन्दर और सीखप्रद संदेश लिए लाजवाब सृजन ।

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    1. सादर आभार आदरणीय मीना दी।

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  2. बहुत अच्छी लघुकथा है यह आपकी अनीता जी । सचमुच अधिकांश लोगों के लिए पर उपदेश कुशल बहुतेरे ही होते हैं ।

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    1. सादर आभार आदरणीय जितेंद्र जी।
      सादर

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  3. उपयोगी और प्रेरक संस्मरणनुमा लघुकथा।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-02-2021) को "प्रणय दिवस का भूत चढ़ा है, यौवन की अँगड़ाई में"   (चर्चा अंक-3977)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    "विश्व प्रणय दिवस" की   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  5. क्या बात है ! बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गगन शर्मा जी सर।
      सादर

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  6. सुन्दर लघु कथा की रचना मुग्ध करती है शुभकामनाओं सह।

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    1. बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय शांतनु सान्याल जी सर।
      सादर

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  7. सटीक प्रहार किया है
    सुंदर कथा

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    1. दिल से आभार आदरणीय अनीता सुधीर जी।
      सादर

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  8. ऐसा ही होता है..बेहतरीन कहानी..

    सादर प्रणाम

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    1. बहुत बहुत आभार हूँ सखी।
      सादर

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  9. जिनके घर में उनकी नहीं चलती वो दूसरे को समझने निकल पड़ते हैं।बहुत सुंदर संदेश देती कहानी प्रिय अनीता जी

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    1. बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय कामिनी जी।
      सादर

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  10. बहुत सार्थक लघु कथा

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मनोज जी।
      सादर

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  11. अपना घर संभलता नहीं दूसरों को उपदेश देने सरल है । बढ़िया लघुकथा

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    1. दिल से आभारी हूँ आदरणीय संगीता स्वरुप जी।
      सादर

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  12. असलियत से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए क्योंकि एक दिन सबको खबर हो ही जानी है
    दूसरों को ज्ञान देने वाले मुंह की खाते हैं एक दिन

    बहुत सटीक

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    1. आभारी हूँ आदरणीय कविता रावत जी।
      सादर

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  13. अक्सर ऐसा ही होता है दूसरे की कमियाँ गिनवा कर अपने मन को संतोष मिलता है, क्योंकि हम अपनी कमियाँ दूर नहीं कर पाते हैं ,मजबूरी इंसान से क्या क्या नही करवाती है , बहुत ही सुंदर रचना अनिता जी ,बधाई हो

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    1. दिल से आभार आदरणीय ज्योति जी।
      सादर

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  14. वाह ! कहानी के अंत में तो मजा आ गया !

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    1. दिल से आभार आदरणीय मीना दी।
      सादर

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  15. पर उपदेश कुशल बहुतेरे...सही बात है ..लोग अपने पे नहीं दूसरों पे ज्यादा ध्यान देते हैं...दूसरों की कमियां निकालते हैं
    बहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक लघुकथा।

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    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार आदरणीय सुधा जी।
      सादर

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