" ममा इसके चेहरे पर स्माइल क्यों नहीं है?” वैभवी ने बेचैन मन से अपनी मम्मी से कहा।
”बनाने वाले ने इसे ऐसा ही बनाया है।” वैभवी की मम्मी ने उससे कहती है।
”उसने इसे ऐसा क्यों बनाया?” पेंटिग देखते हुए वैभवी और व्याकुल हो गई।
”यह तो बनाने वाला ही जाने, उसकी पेंटिंग है।” वैभवी की मम्मी ने बहलाते हुए कहा।
”पेंटर को दोनों लड़कियों के चेहरों पर स्माइल बनानी चाहिए थी ना?”
वह एकाग्रचित्त होकर और बारीकी से पेंटिंग को देखने लगी।
”पेंटर जब मिलेगा तब कहूँगी, इसके चेहरे पर भी स्माइल बनाए।” उसकी मम्मी ने झुँझलाकर कहा।
”आपको तो कुछ नहीं पता ममा! इस लड़की की शादी बचपन में हुई थी।
ऐसी लड़कियाँ कभी स्माइल नहीं करती।"
यह सुनकर वैभवी की माँ अपनी लाड़ली का चेहरा विस्फारित नज़रों से निहारती रह गई!
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (०९-०३-२०२१) को 'मील का पत्थर ' (चर्चा अंक- ४,००० ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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आभारी हूँ सर।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 09 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
अप्रतिम लेखन अनिता जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी।
Deleteकितनी गहन बात छोटी सी लघु कथा में ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ।
दिल से आभार आदरणीय दी जी।
Deleteसादर
सटीक । थोड़े शब्दों में बङी बात । अभिनंदन ।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय नूपुर जी।
Deleteमन को उद्वेलित करते भाव।
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी लघुकथा।
सादर।
आभारी हूँ आदरणीय श्वेता जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभारी आदरणीय अभिलाषा दी जी।
Deleteसादर
आह... निःशब्द।
ReplyDeleteनई रचना
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तोहितास जी।
Deleteसादर
हृदयस्पर्शी रचना, साधुवाद सह ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शांतनु जी सर ।
Deleteसादर
हृदय स्पर्शी और प्रभावशाली।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी सर।
Deleteसादर
मर्मस्पर्शी वास्तव में रचना का अंत निशब्द कर गया
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय।
Deleteबाल विवाह पर मासूम का नजरिया।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर।
हृदय स्पर्शी लघुकथाकथा।
आभारी हूँ आदरणीया कुसुम दी जी।
Deleteसृजन सफल हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
सादर
मन को वेध गई आपकी यह लघुकथा अनीता जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
निशब्द हूँ ..गंभीर संदेश और बेहद सहजता के साथ । अद्भुत सृजन ।
ReplyDeleteदिल से आभार आदरणीय मीना दी।
Deleteसादर
मर्म तक भेदती लघुकथा।
ReplyDeleteदिल से आभार आदरणीय दी।
Deleteसादर
बाल-विवाह का प्रकोप आज भी है. आज से सौ साल पहले तक तो बच्चियां माँ बन जाती थीं और बहुत सी बाल-वधू तो बाल-विधवा भी हो जाती थीं.
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर।
Deleteमनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
सादर
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
छोटी बच्ची की बात से मन सिहर गया. कितनी गंभीर बात कही उसने. सार्थक सृजन के लिए बधाई.
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय जेन्नी दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
बच्ची की समझदारी पर बड़े गर्व कर सकते हैं। लेकिन जो माँ-बाप कम उम्र में बेटियों का विवाह करते हैं उन पर कोई गर्व नहीं कर सकता। सार्थक लघुकथा। आपको बधाईयाँ।
ReplyDeleteसही कहा आपने...।
Deleteसादर आभार आदरणीय वीरेंद्र जी।
सादर
बहुत ही बड़ी बात इस लघु कथा की छोटी सी बच्ची ने कह दिया,मन की बात मन ही कह डालता है , super, super, super, शुभ प्रभात
ReplyDeleteदिल से आभार आपका आदरणीया ज्योति जी।
Deleteसृजन सार्थक हूआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
सादर
बहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित लघुकथा।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय सुधा जी।
Deleteसादर
बेहतरीन कहानी है दिल छू लिया
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
वाह !
ReplyDeleteसस्नेह आभार आदरणीय दी।
Deleteसादर