”माँ बचपन में सुनाया करती थी वह लोरी सुनाओ ना।”
नंदनी ने अपनी माँ की गोद में सर रखते हुए कहा।
”मन बेचैन है लाडो?”
उसकी माँ ने स्नेह से पूछा।
”नहीं ऐसा कुछ नहीं है।”
नंदनी ने अपनी माँ का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा।
”कुछ तुम्हारे ससुराल कुछ जवाई जी की भी कहो।”
नंदनी की माँ ने उसका सर सहलाते कहा।
”माँ लोरी सुना न।”
अनसुना करते हुए नंदनी छोटी बच्ची की तरह इठलाई।
” अच्छा सुन...। "
”ओढ़नी की बूँदी,लहरिए री लहर,बिंदी री चमक,पायल री खनक,मेरे पोमचे रो गोटो तू
मान-सम्मान-स्वाभिमान है तू।”
उसकी माँ ने पोमचे के पल्लू से बेटी नंदनी का मुख ढकते हुए कहा।
पहले सावन मायके नंदनी अनेक उलझनों के साथ आई थी।
”माँ...।”
और नंदनी मौन हो गई।
” हूँ ...बोल! न लाडो।”
नंदनी की माँ ने उसके मुख से पल्लू हटाया।
”मैं तुम्हारे सर का ताज हूँ यह नहीं कहा। ब्याह के बाद बेटियाँ पराई हो जाती हैं?”
नंदनी ने अपने आकुल मन को सुलाते हुए पूछा।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 08 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteपाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु दिल से आभार आदरणीय यशोदा दी जी।
Deleteसादर
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-8-21) को "रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन"(चर्चा अंक- 4150) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
आभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
शायद विवाह के बाद लड़कियों का स्थान बदल जाता है ।
ReplyDeleteमाँ से स्नेह से पूछा।
माँ ने आना चाहिए शायद । एक बार देख लें ।
भाव पूर्ण लघु कथा ।
दिल से आभार आदरणीय संगीता दी जी मार्गदर्शन करती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बेटी के मन की कसक मन तक पहुंची... बहुत हृदयस्पर्शी लघुकथा अनीता जी !
ReplyDeleteदिल से आभार आदरणीय मीना दी जी।
Deleteसादर
अन्तर्मन को छूती सुंदर भावपूर्ण कथा।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
Deleteसादर
बहुत ही मार्मिक को हृदयस्पर्शी लघुकथा
ReplyDeleteदिल से आभार प्रिय मनीषा।
Deleteसादर
निःशब्द करती हृदयस्पर्शी, भावपूर्ण रचना - - नमन सह अनीता दी।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
Deleteआप जैसे वरिष्ठ साहित्यकार द्वारा दी संबोधन बहुत अच्छा लगा।
अत्यंत हर्ष हुआ।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
माँ नंदनी के मुख से पल्लू हटाती है।
ReplyDelete”मैं तुम्हारे सर का ताज हूँ।”
यह नहीं कहा।
और नंदनी अपने आकुल मन को सुलाने लगती है ।---गहनतम। यह भावनाओं का जो ओरा है उसमें कई बार रिश्ते कसमसा कर रह जाते हैं...बहुत सुंदर रचना है आपकी।
आभारी हूँ आदरणीय संदीप जी सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसादर
बेहद हृदयस्पर्शी सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सखी।
Deleteसादर
विवाह के बाद होने वाले बदलावों से मन कसमसाता रह जाता है
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया प्रिय प्रीति जी।
Deleteसादर
समर्पित हूँँ माँँ कि लाडो और लोरी के प्रति । अति सुंदर !
ReplyDeleteआभारी हूँ।
Deleteसादर
आदरणीय कृप्या बतायें? ' पोमचे ' का अर्थ किया होता है ।
ReplyDelete"पोमचा" - राजस्थान की एक प्रसिद्ध ओढ़नी है।
Deleteसादर
हृदय स्पर्शी सृजन
ReplyDeleteआभारी हूँ अनुज।
Deleteसादर
सुन्दर हृदयस्पर्शी लघुकथा पढ़कर बहुत अच्छा लगा।बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको।
ReplyDeleteआभारी हूँ सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसादर
जिस घर में बेटियां सर का ताज समझी जाती हैं, वहीं देवताओं का वास होता है.
ReplyDeleteसच कहा आपने आदरणीय सर।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर प्रणाम