”आज जवान के सीने पर एक और मैडल।” मूँछ पर ताव देते हुए रितेश ने अपनी पत्नी प्रिया से फोन पर कहा।
”बधाई हो...।”
प्रिया ख़ुशी और बेचैनी के तराज़ू में तुलते हुए स्वयं को खोज रही थी कि वह कौनसे तराज़ू में है ?
”अरे! हम तो हम हैं, हम थोड़े किसी कम हैं।”
अपनी ही पीठ थपथपाते हुए घर परिवार की औपचारिकता से परे ख़ुशियों की नौका पर सवार था रितेश।
”मन घबराता है तुम्हारे इस जुनून ...।”
प्रिया ने अपने ही शब्दों को तोड़ते हुए चुप्पी साध ली।
” मूँग का हलवा ज़रुर बनाना और हाँ! भगवान को भोग लगाना मत भूलना, तुम्हारा उनसे फ़ासला कम हो जाएगा।”
प्रिया के शब्दों को अनसुना कहते हुए अपनी ही दुनिया में मग्न रितेश जोर का ठहाका लगाया।प्रिया ने रितेश को इतना ख़ुश कभी नहीं देखा।
एक सेकंड के लिए प्रिया को लगा, कैसे नज़र उतारुँ रितेश की कहीं मेरी ही नज़र न लग जाए इसे।
”ससुराल बदलना पड़ेगा, कुछ दिनों की ब्रेक जर्नी मिलेगी; पूछना मत कहाँ जा रहे हो? मैं नहीं बताऊँगा।”
रिश्तों के मोह से परे रितेश अपनी ही दुनिया में मुग्ध था। ग़ुस्सा कहे या प्रेम प्रिया के हाथों फोन कट जाता है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
एक सैनिक का जूनून और सैनिक पत्नियों के मन की असिमित आशंकाओं का अद्भुत चित्रण करती सार्थक लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
दिल से आभार आदरणीया कुसुम दी।
Deleteसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 17 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय यशोदा दी जी मंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
बहुत सुन्दर और सार्थक।
ReplyDeleteजय हिन्द।
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
एक फौजी की पत्नी कितनी आशंकाओं से घिरी रहती है .... और सैनिक देश प्रेम के रंग में ... सार्थक लघुकथा
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीया संगीता दी जी उत्साहवर्धन हेतु।
Deleteसादर
सीमा प्रहरी .. दिन-रात की चौकसी देश की आन-बान और शान के लिए । उनके साथ-साथ उनका परिवार भी कदम कदम पर वीरता का परिचय देता है । सैल्यूट इन्हें और इनके परिवारों को । बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी लघुकथा ।
ReplyDeleteदिल से आभार आदरणीया मीना दी जी।
Deleteसादर
सुंदर सृजन
ReplyDeleteआभारी हूँ सर।
Deleteसादर
सीमा प्रहरी के मन की वेदना और कर्तव्य परायणता तथा उसके परिवार की मन: स्थिति को उजागर करती सुंदर कथा।
ReplyDeleteआभारी हूँ सुजाता जी।
Deleteसादर
आभार मूमेंट सजोने...।
ReplyDeleteऐसा नहीं है कि सैनिकों को मोह नहीं होता नसीब मोह पालना नहीं सिखाता। ग़ुस्सा वाजिब है।
गजब का लिखती हो।
दिल से आभार।
Deleteमैंने कब कहा वो तो कवि मन ने कहा था😊तारीफ़ हेतु दिल से आभार।
सादर
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (20-08-2021) को "जड़ें मिट्टी में लगती हैं" (चर्चा अंक- 4162) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आभारी हूँ आदरणीय मीना दी जी मंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
ऐसी मनोदशा में भी स्वयं को संयत रखना कितना कठिन होता होगा । मर्मभेदी सृजन ।
ReplyDeleteपता ही नहीं चलता कब यह सब ज़िंदगी का एक हिस्सा बन जाता है।
Deleteदिल से आभार आदरणीय अमृता दी जी।
सादर
सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
Deleteसादर
फौजी जीवन के एहसासों के मर्म को समझाती भावपूर्ण लघुकथा।
ReplyDeleteसुंदर अनुभव का सृजन ।
आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी आपको लघुकथा पसंद आई। अत्यंत हर्ष हुआ।
Deleteसादर
प्रिया ख़ुशी और बेचैनी के तराज़ू में तुलते हुए स्वयं को खोजती है कि वह कौनसे तराज़ू में है ?
ReplyDeleteवाह!!!
कमाल के शब्द दिये आपने उस वक्त के एहसास को...हर पत्नी अपने पति की ऐसी सफलताओं पर बहुत खुश होती है परन्तु एक सैनिक की पत्नी ऐसे खुशियों के अवसर पर भी उसकी बेचैनी उसकी खुशियों पर हावी हो जाती है...बहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा।
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी।
Deleteसभी के अपने-अपने मनोभाव है किसी के कहे को किस रूप में लेते हैं परिस्थिति पर निर्भर करता है। समीक्षातमक प्रतिक्रिया से लघुकथा को नवाजने हेतु अनेकानेक आभार।
सादर स्नेह।
हमारे जवानों की देशभक्ति के जज़्बे को सलाम !
ReplyDeleteसही कहा सर आपने जवानों की देशभक्ति के जज़्बे को सलाम !
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