Powered By Blogger

Sunday, 5 September 2021

आपणों मारवाड़



                      ”भगवती जीजी! पानी से के सूरज न सींच सी। तुम्हारे गाय न बाछी नीना बासी। देखो तो सही रोज़ मटको उठा चाल पड़े।”

सरबती काकी भगवती ताई का उपहास उड़ाती हुई, उनकी दुःखती रग पर हाथ रखते हुए कहती है।

”मैं और म्हारो खसम में तो माणस ही कोनी?”

कहते हुए भगवती ताई सर पर रखा मटका सुव्यवस्थित करती है और एक मटका कमर पर रख चल देती है।

देखते ही देखते उनके क़दमों की गति बाक़ी औरतों से स्वतः ही तेज़ हो जाती है।

छींटाकसी से कोसों दूर भगवती ताई अपने सौम्य स्वभाव के लिए जानी जाती है।

औलाद न होने का दुःख कभी उनके चेहरे से नहीं झलका।

” बात तो ठीक कहो जीजी! थोड़ी धीरे चालो। मैं तो यूँ कहूँ,थारो भी मन टूटतो होगो। टाबरा बिन फिर यो जीवन किस काम को। म्हारे देखो चार-चार टाबर आँगन गूँजतो ही रह है ।”

सरबती काकी ने अपनी मनसा परोसी कि वह अपना दुखड़ा  रोए और कहे।

”हाँ मैं अभागी हूँ,मेरा तो भाग्य ही फूटेड़ो है जो औलाद का सुख नसीब नहीं हुआ।”

परंतु भगवती ताई इन सब से परे अपनी एक दुनिया बसा चुकी है।

”आपणों मारवाड़ आपणी बेटियाँ न टूटणों नहीं,सरबती! उठणों सिखाव है। तू कद समझेगी।”

भगवती ताई दोनों मटके प्याऊ में रखते हुए कहती है।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

18 comments:

  1. जीवन एक संघर्ष है. परिस्थितियों से जूझना ही जीवन की नियति है.
    मार्मिक संदेश देती लघुकथा.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      सादर

      Delete
  2. सार्थक संदेश देती अच्छी लघु कथा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय दी।
      सादर

      Delete
  3. जीवन का सार्थक और सकारात्मक पहलू दर्शाती सशक्त लघुकथा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी।
      सादर

      Delete
  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06-09-2021 ) को 'सरकार के कान पर जूँ नहीं रेंगी अब तक' (चर्चा अंक- 4179) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      Delete
  5. बहुत प्रेरक लघु कथा, दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व परमार्थी सोच
    सच मारवाड़ की इन विरांगनाओं को नमन।
    सुंदर! हृदयग्राहिणी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी जी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सादर

      Delete
  6. सकारात्मकता का सार्थक संदेश देती उत्कृष्ट कथा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी।
      सादर

      Delete
  7. इस लघुकथा की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम ही रहेगी आदरणीया अनीता जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अत्यंय हर्ष हुआ सर आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सादर नमस्कार

      Delete
  8. वाह अनीता, प्यारी सी लघु-कथा !
    मारवाड़ी कविताओं-गीतों की तरह अपनी कहानी में भी आंचलिक संवादों के साथ उनका हिंदी भावार्थ भे दे दो तो हमको उन्हें समझने में आसानी होगी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी जरुर सर।
      अत्यंत हर्ष हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर प्रणाम

      Delete
    2. सादर प्रणाम सर 🙏

      ”भगवती जीजी!पानी से क्या सूरज को सींचोगी।
      आपके गाय-बाछी तो है नहीं फिर पानी लेने क्यों आती हो? देखो तो सही रोज़ मटका उठा कर चल देती है।

      शरबती काकी भगवती ताई का उपहास उड़ाती हुई, उनकी दुःखती रग पर हाथ रखते हुए कहती है।

      "मैं और मेरा ख़सम तो हैं ना, हम इंसान नहीं हैं क्या?
      हमें भी तो पानी चाहिए।"

      कहते हुए भगवती ताई सर पर रखा मटका सुव्यवस्थित करती है और एक मटका कमर पर रख चल देती है।

      देखते ही देखते उनके क़दमों की गति बाक़ी औरतों से स्वतः ही तेज़ हो जाती है।

      छींटाकसी से कोसों दूर भगवती ताई अपने सौम्य स्वभाव के लिए जानी जाती है।

      औलाद न होने का दुःख कभी उनके चेहरे से नहीं झलका।

      ”बात तो ठीक कहो जीजी!परंतु थोड़ी धीरे-धीरे चलो।
      कभी कभार ही सही मन में विचार तो आता ही होगा? ,आपका मन भी टूटता ही होगा बिन बच्चों के, बिन बच्चों के जीवन भी क्या जीवन।
      अब मेरे ही देखो चार-चार बच्चे है।आँगन गूँजता ही रहता है।”

      शरबती काकी ने अपनी मनसा परोसी कि वह अपना दुखड़ा रोए और कहे।

      "हाँ, मैं अभागी हूँ। मेरा तो भाग्य ही फूटा है जो औलाद का सुख नसीब नहीं हुआ। "

      परंतु भगवती ताई इन सब से परे अपनी एक दुनिया बसा चुकी है।

      ”अरे शरबती!
      अपनों मारवाड़ अपनी बेटियों को लाचार होकर टूटना-बिखरना नहीं बल्कि हर हाल में उठना और जीना सिखाता है."

      भगवती ताई पानी के दोनों मटके प्याऊ में रखते हुए कहती है।

      @अनीता सैनी 'दीप्ति'

      Delete
  9. सकारात्मक सोच के साथ जीने का संदेश देती बहुत ही सुन्दर लघुकथा अनीता जी!
    हिन्दी अनुवाद पढकर समझ आयी लघुकथा
    बहुत ही लाजवाब।

    ReplyDelete

सीक्रेट फ़ाइल

         प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'लघुकथा डॉट कॉम' में मेरी लघुकथा 'सीक्रेट फ़ाइल' प्रकाशित हुई है। पत्रिका के संपादक-मंड...