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Thursday, 23 December 2021

पचास पार की औरतें

   


     ”अरे थोड़ा कस के बाँध, देख! पत्ते खिसक गए हैं।”

संतो अपनी देवरानी सुचित्रा से घुटने पर आक के गर्म पत्ते बँधवाते हुए कहती है।

” पचपन की होने को आई जीजी! फिर भी बैल के ज्यों दौड़ती हो, क्यों करती हो इतनी भाग-दौड़ ?थोड़ा आराम भी कर लिया करो।”

सुचित्रा अपनी जेठानी संतो के घुटने पर गर्म पट्टी व पत्ते बाँधते हुए कहती है 

”अभी बैठी तो मेरी गृहथी तीन-तेरह हो जाएगी, मेरे अपने तो बादल को बोरे में भरने में व्यस्त हैं।”

कहते हुए संतो गुनगुनी धूप में वहीं चारपाई पर लेट जाती है।परिवार का विद्रोही व्यवहार कहीं न कहीं उसके मन की दरारों को और गहरा कर गया। दोनों देवरानी-जेठानी में इतना लगाव कि एक-दूसरे का मुँह देखे बगैर चाय भी नहीं पीती हैं।

”दो डग तुम्हें भी भरने होंगे जीजी!  समय के साथ देश-दुनिया बदल रही है।हर मौसम में झाड़ी के खट्टे बेर नहीं लगते।”

कहते हुए सुचित्रा धुँध में धुँधराए सूरज को ताकती है।

”तृप्ति का एहसास बंधनों से मुक्त करता है। मैं बेटे- बहुओं का चेहरा देखने को तरस गई।”

संतो पलकें झपकाती है एक गहरी सांस के साथ।

” नहीं जीजी! तुम्हारी आँखों पर मोह की पट्टी बँधी है, दिखता नहीं है तुम्हें; तुम्हारी एक गृहस्थी को तीन जगह बाँध रहे है। अब भला एक मटका लोटे में कैसे समाए?”

सुचित्रा वहाँ से उठते हुए कहती है।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

24 comments:

  1. Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय अनीता दी जी।
      सादर

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  2. गहन भाव समेटे आदर्श लघुकथा।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कुसुम दी जी।
      सादर

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  3. तुम्हारी एक गृहस्थी को तीन जगह बाँध रहे है। अब भला एक मटका लोटे में कैसे समाए?”
    फिर भी माँ कोशिश करती ही रहती है परिवार को बाँधे रखने की...
    बहुत ही सारगर्भित एवं सार्थक लघुकथा।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुधा दी जी।
      सादर

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  4. एक शब्द चित्र जैसी गहन लघुकथा जिसमें जीवन्त परिवेश बहुत प्रभावित करने वाला लगा ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर स्नेह

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय श्वेता दी जी।
      सादर स्नेह

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  6. बेहतरीन लघुकथा।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय अनुराधा दी।
      सादर

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  7. जब बेटे की गृहस्थी बस्ती है तो बदलाव आने स्वाभाविक है .... मोह भी धीरे धीरे कम होता जाता है ।।गहन भाव भर दिए लघु कथा में ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय संगीता दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  8. बहुत सुंदर रचना ,परिवर्तन स्वाभाविक रूप है

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    1. आभारी हूँ आदरणीय भारती जी।
      सादर

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  9. वाह!अनीता ,बेहतरीन सृजन । मन को छू गई आपकी रचना ।

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    1. आभारी हूँ प्रिय शुभा दी जी।
      आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरे।
      सादर

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  10. सुन्दर लघु कथा

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      सादर

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  11. बहुत मार्मिक कथा !
    बिछड़े सभी बारी-बारी !

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गोपेश जी सर।
      आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरे।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  12. बहुत सुंदर कथा ।

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