”अरे थोड़ा कस के बाँध, देख! पत्ते खिसक गए हैं।”
संतो अपनी देवरानी सुचित्रा से घुटने पर आक के गर्म पत्ते बँधवाते हुए कहती है।
” पचपन की होने को आई जीजी! फिर भी बैल के ज्यों दौड़ती हो, क्यों करती हो इतनी भाग-दौड़ ?थोड़ा आराम भी कर लिया करो।”
सुचित्रा अपनी जेठानी संतो के घुटने पर गर्म पट्टी व पत्ते बाँधते हुए कहती है
”अभी बैठी तो मेरी गृहथी तीन-तेरह हो जाएगी, मेरे अपने तो बादल को बोरे में भरने में व्यस्त हैं।”
कहते हुए संतो गुनगुनी धूप में वहीं चारपाई पर लेट जाती है।परिवार का विद्रोही व्यवहार कहीं न कहीं उसके मन की दरारों को और गहरा कर गया। दोनों देवरानी-जेठानी में इतना लगाव कि एक-दूसरे का मुँह देखे बगैर चाय भी नहीं पीती हैं।
”दो डग तुम्हें भी भरने होंगे जीजी! समय के साथ देश-दुनिया बदल रही है।हर मौसम में झाड़ी के खट्टे बेर नहीं लगते।”
कहते हुए सुचित्रा धुँध में धुँधराए सूरज को ताकती है।
”तृप्ति का एहसास बंधनों से मुक्त करता है। मैं बेटे- बहुओं का चेहरा देखने को तरस गई।”
संतो पलकें झपकाती है एक गहरी सांस के साथ।
” नहीं जीजी! तुम्हारी आँखों पर मोह की पट्टी बँधी है, दिखता नहीं है तुम्हें; तुम्हारी एक गृहस्थी को तीन जगह बाँध रहे है। अब भला एक मटका लोटे में कैसे समाए?”
सुचित्रा वहाँ से उठते हुए कहती है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
गहन भाव
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय अनीता दी जी।
Deleteसादर
गहन भाव समेटे आदर्श लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कुसुम दी जी।
Deleteसादर
तुम्हारी एक गृहस्थी को तीन जगह बाँध रहे है। अब भला एक मटका लोटे में कैसे समाए?”
ReplyDeleteफिर भी माँ कोशिश करती ही रहती है परिवार को बाँधे रखने की...
बहुत ही सारगर्भित एवं सार्थक लघुकथा।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुधा दी जी।
Deleteसादर
एक शब्द चित्र जैसी गहन लघुकथा जिसमें जीवन्त परिवेश बहुत प्रभावित करने वाला लगा ।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय मीना दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर स्नेह
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभारी हूँ आदरणीय श्वेता दी जी।
Deleteसादर स्नेह
बेहतरीन लघुकथा।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय अनुराधा दी।
Deleteसादर
जब बेटे की गृहस्थी बस्ती है तो बदलाव आने स्वाभाविक है .... मोह भी धीरे धीरे कम होता जाता है ।।गहन भाव भर दिए लघु कथा में ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय संगीता दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
बहुत सुंदर रचना ,परिवर्तन स्वाभाविक रूप है
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय भारती जी।
Deleteसादर
वाह!अनीता ,बेहतरीन सृजन । मन को छू गई आपकी रचना ।
ReplyDeleteआभारी हूँ प्रिय शुभा दी जी।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरे।
सादर
सुन्दर लघु कथा
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
बहुत मार्मिक कथा !
ReplyDeleteबिछड़े सभी बारी-बारी !
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गोपेश जी सर।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरे।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत सुंदर कथा ।
ReplyDeleteसादर आभार।
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