”माइंड को लोड क्यों देने का साहेब?”
नर्स डॉ. के साथ केबिन से बाहर निकलते हुए कहती है।
"बच्ची ने कुछ खाया?”
डॉ. निक्की की ओर संकेत करता हुए कहता है।
”नहीं साहेब! आजकल के बच्चे कहाँ कुछ सुनते हैं?
बार-बार एक ही नम्बर डायल कर रही है।"
नर्स दोनों हाथ जैकेट में डालते हुए शब्दों की चतुराई दिखाने में व्यस्त हो जाती है।
"साहेब लागता है ये केस मराठी छै; बार-बार बच्ची आई-बाबा बोलती।”
नर्स छ-सात साल की निकी के आँसू पौछते हुए उसका मास्क ठीक करने लगती है।
”जब तक बच्ची के रिलेटिव नहीं पहुँचते; आप बच्ची का खयाल रखें।”
डॉ. फ़ाइल नर्स के हाथ में थमाते हुए। पास ही बैठी अपनी बहन शिखा को हाथ से चलने का इशारा करता है।
”साहेब! आर्मी वालों का कोई ठिकाना नहीं होता। कब तक लौटेगा…? मेरे को इतना टाइम कहाँ…! मैं क्या करेगी; कहाँ रखेगी बच्ची को ?"
नर्स पीछे से आवाज़ लगाती है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-01-2022) को चर्चा मंच "मकर संक्रान्ति-विविधताओं में एकता" (चर्चा अंक 4310) (चर्चा अंक-4307) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत शुक्रिया सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
दुनिया की कड़वी सच्चाई दर्शाता मर्मस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना दी जी।
Deleteसादर स्नेह
मर्मस्पर्शी चित्रण।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया।
Deleteसादर
ओह , कैसी विडंबना ।
ReplyDeleteसमय का खेल है आदरणीय दी।
Deleteसादर
यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य ही है कि जो हमारी जान की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह किए बगैर सर्द गर्म बरसात में हमेशा डटा रहता है सीमाओं पर,उसी के परिवार के देखभाल करने के लिए हमारे पास वक़्त नहीं होता है!
ReplyDeleteसमाज की कड़वी सच्चाई को दर्शाता बहुत ही मार्मिक वह हृदय स्पर्शी लघुकथा!
प्रिय मनीषा जी समाज का सच है जिसे हर कोई
Deleteजिह्वा के नीच छिपा कर रखता है और शब्दों में महानता बिखेरते हैं परंतु समझ के पीछे यथार्थ कुछ और होता है।
सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार।
सादर स्नेह
मार्मिक सच्ची कहानी... सबक भी देती है अनीता जी...इसका मर्म हम तक पहुंचाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
आर्मी वालों का कोई ठिकाना नहीं होता। कब तक लौटेगा…?
ReplyDeleteसबके ठिकानों की सुरक्षा में दुश्मनों को ठिकाने लगाने वाले इन आर्मी वालों का अपना कोई ठिकाना नहीं होता...
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब लघुकथा।
आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसब नियति के खेल है स्वार्थ के पायदान पर खड़ा समाज का सच है।
हार्दिक आभार दी।
सादर स्नेह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 16 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत शुक्रिया सर पांच लिंको पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी।
Deleteसादर
सुन्दर कथानक
ReplyDeleteशिल्प अधूरा क्यों
शीर्षक श्रम खोजता है
हार्दिक आभार आदरणीय विभा दी।
Deleteसम्भावनाओं की आहटें....।
आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर प्रणाम
वाह!हृदय को आंदर तक छू गई आपकी रचना प्रिय अनीता ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शुभा दी।
Deleteसादर स्नेह
समाज की कड़वी सच्चाई,दिल में बहुत गहरे तक छू गई आपकी मार्मिक अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी।
Deleteप्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
सादर
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteसादर
नर्स नन्हीं निक्की का ख्याल रक्खे या न रक्खे, कृतज्ञ राष्ट्रवासी उसे प्यार,ममता और आसरा ज़रुर देंगे.
ReplyDeleteकाश सच्च में उस बच्ची को कोई आप जैसे अभिभावक मिले।
Deleteसच्च कहूँ तो सर इंसानियत नहीं रही। स्वार्थ के पुतले हो गए है रिश्ते।
आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर