"लव इज़ लाइफ़ बट माय लाइफ इज़ माय वर्क।”
अनूप का स्टेटस पढ़ते हुए अदिति एक नज़र अनूप पर डालती है। काम का बोझ ज्यों झाँक रहा हो आँखों से और स्टेटस...।
”लाइफ इज़ ब्यूटीफुल बट स्ट्रेस इज़ थॉर्न।”
हल्की बरसात में कॉरिडोर से अपना हाथ बढ़ाते हुए, अदिति कहती है।
"तुम्हारी मुस्कुराहट ही मेरी ज़िंदगी है।”
अनूप एक नजर आदिति पर डालता है फिर फ़ाइल में रो खींचने में व्यस्त हो जाता है वह समझ चुका है कि अदिति ने उसका स्टेटस पढ़ लिया है। कहीं न कहीं उसके शब्दों का दर्द झेल रही।
”घुटनों के बल सीढ़ियाँ चढ़ता अबोध बालक है जीवन।”
आदिति पहेली के सहारे शब्दों के पुल को बाँधने के प्रयास के साथ पति के कंधे पर सर रखते हुए कहती है।
" नज़रिया है अपना-अपना। मुझे लगता है ज़िंदगी उस चिड़िया की तरह है जो मेरी तरह भरी बरसात में अपने पँख झाड़ रही है।"
अनूप फ़ाइल साइड में रखते हुए कंधे पर रखा आदिति का सर सहलाने लगता है।
”मुझे लगता है फ़ाइल में बंद प्रत्यक कारतूस का हिसाब है जिंदगी...।”
अदिति की ज़बान लड़खड़ा जाती है।अनजाने में शब्दों की चोट से एक नासूर रिसने लगता है। वादियों में प्रेम ढूँढ़ने निकला मन झोंके के थपेड़े से सहम जाता है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
गहन भाव
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteसादर
रहस्यमय!
ReplyDeleteसंवेदनाओं से भरी गूढ़ भावों की लघुकथा।
अप्रतिम।
आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी आपकी प्रतिक्रिया मिली।
Deleteसादर
भावपूर्ण शब्दों में पिरोई लघुकथा
ReplyDeleteआभारी हूँ अनुज।
Deleteसादर
गूढ़ भावों से ओतप्रोत खूबसूरत लघुकथा ।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय मीना दी।
Deleteसादर स्नेह
वाह!प्रिय अनीता ,अद्भुत !!
ReplyDeleteआभारी हूँ प्रिय शुभा दी जी।
Deleteसादर
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जनवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभारी हूँ प्रिय श्वेता दी जी पांच लिंको पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर स्नेह
पुरुष वास्तविक संसार में जीता है , जबकि स्त्री ज्यादातर कल्पना का संसार बुन लेती है ।
ReplyDeleteपुरुष का प्रेम झरने की तरह तेज़ प्रवाह लिए होता है तो नारी का मंथर गति से बहने वाली नदी के समान ।
पुरुष किसी नारी से प्रेम सम्पूर्ण समर्पण के बाद करता है जबकि नारी प्रेम होने के बाद सम्पूर्ण समर्पण करती है ।
वैवाहिक जीवन में अधिकतर पुरुष अपने काम के प्रति ज्यादा आसक्त होता है , जबकि स्त्री की दुनिया उसका पति होता है ।
इस लघुकथा में भी मुझे ऐसा ही कुछ लग रहा है । पति - पत्नी के संवाद को बखूबी लिखा है ।।
जटिल संवेदना की सूक्ष्म पड़ताल एवं संतुलित स्पष्टीकरण, सरल व्याख्या से । बहुत ही सुन्दर ।
Deleteआभार अमृता जी ।
Deleteबस जो समझ में आया लिखने का प्रयास किया ।
बाकी तो लिखने वाला ही जाने ।
आभारी आदरणीय संगीता दी जी व आदरणीय अमृता दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
ऐसी लाजवाब प्रतिक्रियाएं जीवन में सहस सहजता देती है, बहुत कुछ सिखाती हैं, आदरणीय संगीता दीदी आपकी प्रतिक्रिया बहुत ही सार्थक और प्रशंसनीय है ।
Deleteसही कहा आपने आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
Deleteसादर
नजरियों के द्वन्द्वात्मकता को सुन्दरता से उकेरा है, मर्मस्पर्शी शब्दों से ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया अमृता दी जी आपने लघुकथा का मर्म स्पष्ट किया।
Deleteबस नजरिया है अपना अपना ज़िंदगी को जीने का उसमें डूबने का।
सृजन सार्थक हुआ।
सादर स्नेह
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteसादर
कम शब्दों में पति पत्नी के प्यार को परिभाषित करती सुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति बहन।
Deleteसादर
"तुम्हारी मुस्कुराहट ही मेरी ज़िंदगी है।”
ReplyDeleteआभार ..
सादर..
और मेरी भी 🥰
Deleteआपभी यों ही मुस्कुराते रहें।
हार्दिक आभार आदरणीय दी।
सादर
बेहद हृदयस्पर्शी लघुकथा।
ReplyDeleteआभारी हूँ सखी।
Deleteसादर
गहन भाव लिए सुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया प्रिय पम्मी दी जी।
Deleteसादर
दार्शनिकता का पुट संजोए कथा अपने भीतर अर्थपूर्ण है। बधाई लेखिका को:)
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया संबल है आदरणीय दी।
Deleteहार्दिक आभार
बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
Deleteसादर
उस शख्स का क्या करे कोई जो अपनी रोमांटिक बीबी से नहीं, बल्कि अपने ऑफ़िस की फ़ाइल से प्यार करता है.
ReplyDeleteआदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी सर सुप्रभात।
Deleteकुछ नहीं बस छोटी सी पनिशमेंट देते हैं। क्योंकि मुझे अपनी लघुकथा के पात्रों से बड़ा प्रेम रहता है ज्यादा तकलीफ नहीं दे सकती।
हार्दिक आभार सर।
आशीर्वाद बनाए रखें।
बहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।
Deleteसादर
भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही मार्मिक व हृदयस्पर्शी लघुकथा
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रिय मनीषा जी सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसादर स्नेह
शानदार लघुकथा आदरणीय ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
नारी के संवेदनशील मन को पकड़ने की लाजवाब कोशिश । और पुरुष वो तो है ही जन्मजात कर्तव्यनिष्ठ ।.. कम शब्दों में बहुत कुछ कहती लघुकथा । बधाई अनीता जी ।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार आपका आदरणीया जिज्ञासा दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर स्नेह
वह समझ चुका है कि अदिति ने उसका स्टेटस पढ़ लिया है। कहीं न कहीं उसके शब्दों का दर्द झेल रही।
ReplyDeleteशब्दों का दर्द!और शब्दों की चोट!
संवेदनशील मुद्दे को अद्भुत शब्दों में वयां किया है लघुकथा में...
लाजवाब।
हार्दिक आभार आदरणीय सुधा दी जी संबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर