”अम्मा जी आपके साथ और कौन-कौन है?” कहते हुए नर्स ड्रिप बदलने लगती है।
”हाँ…हाँ… वे!” कहते हुए अम्मा जी टुकुर-टुकुर नर्स को घूरने लगती हैं ।अम्मा जी की स्मृति विस्तार पर प्रश्न वाचक का लोगो लगा हुआ था।नर्स डॉ. को जो जो सुनाना चाहती, वही उन्हें सुन जाता। दिखाई भी वही देता, नर्स डॉ. को जो जो दिखाना चाहती।
”अम्मा जी कुछ स्मरण हुआ ?” नर्स जाते-जाते यही शब्द फिर दोहराती है। अम्मा जी को कुछ याद आता है परंतु याद की तरह नहीं बल्कि छींक की तरह, उमड़ता है फिर चला जाता है । नर्स को फिर टुकुर-टुकुर देखने लगती है।
”बड़ी शांत और सुशील हैं अम्मा जी।”कहते हुए पाँच नंबर बैड का पेशेंट अम्मा जी के पास से गुजरता है।
"ओह! शांत और सुशील! " व्यंग्यात्मक स्वर में नर्स यही शब्द फिर दोहराती है। अम्मा जी को भी यही सुनाई देता हैं।
”हाँ…हाँ…हाँ…शांत…सुशील… !” स्मृतियाँ अब अम्मा जी के बुखार की तरह धीरे-धीरे उमड़ती हैं। बहुत देर तक स्थाई रहती हैं। माथे पर ठंडे पानी से भीगी पट्टी रखी जाती है। गहरी साँस के साथ चारों तरफ़ देखती हैं परंतु दिखता नहीं है।स्वयं के साथ संघर्ष कर आजीवन अर्जित किया ख़िताब अम्मा जी के होंठो पर फिर टहलने लगता हैं।
”शांत… सुशील…।”
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.03.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4365 दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
मार्मिक
ReplyDeleteहृदय से आभार।
Deleteसादर
जीवन के आख़िरी पड़ाव पर अपनों का साथ सबसे बड़ी नेमत है उसके अभाव में इन्सान स्वयं छला हुआ महसूस करता है ।मार्मिक सृजन ।
ReplyDeleteसच कहा दी आख़िरी पड़ाव में मिला अपनों का साथ नेमत ही है। लघुकथा का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार।
Deleteसादर
शांत और सुशील होकर जीवन से ऐसे छला जाना नियति है या खुशी? परितप्त करती अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteनियति कहूँ कि ख़ुशी या अनभिज्ञता।
Deleteदेहरी की रखवाली करते हुए नारी मन क्या चाहता है मान सम्मान और प्रेम।
ठगों की दुनिया में ठगी सी रह गई है।
हृदय से आभार आपका आदरणीय अमृता दी जी।
सादर
मौन के पीछे के दर्द को कोई नहीं समझ पाता, जिंदगी पर आँधी के थपेड़े सहकर बरगद सी झुकती चली जाती है...
ReplyDeleteशाँत सुशील!के ख़िताब के पीछे कितने झंझावात है???
स्मृतियों के पर्दे कभी कभी हिलते हैं बस।
बहुत गहन भावों की लघुकथा , साधुवाद।
स्त्री जीवन की गहराई में जितना उतरती हूँ उतनी ही डूबती चली जाती हूँ। विचरों की जकड़न में जड़ी एक मासूम सी मुरत। सच कहा आपने शाँत सुशील!के ख़िताब के पीछे कितने झंझावात है???
Deleteआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
सादर
सारगर्भित भावों को समेटे हुए मर्मस्पर्शी लघुकथा।
ReplyDeleteहृदय से आभार आदरणीय श्वेता दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
अच्छी और मार्मिक लघुकथा बहुत बधाइयाँ
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका।
Deleteसादर
आपकी रचना मन को छूती है । मन के विचारों को उथल पुथल करती है । फिर भी कुछ ना कुछ कहने को मजबूर करती है । यही रचना की सार्थकता है ।
ReplyDelete- बीजेन्द्र जैमिनी
पानीपत - हरियाणा
संबल बनती प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार आदरणीय सर। यों ही मार्गदर्शन करते रहे।
Deleteसादर
हृदयस्पर्शी सृजन प्रिय अनीता । शांत और सुशील का खिताब पाने के लिए बहुत कुछ खोना पडता है ।
ReplyDeleteहृदय से आभार प्रिय शुभा दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
Deleteसादर
दिल को छू गया
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका।
Deleteसादर
सबके बड़बोलेपन में घर की शान्ति बनाते बनाते अपने अपमान तक पर चुप रह जाना शान्ति है नारी की...अन्तिम क्षणों तक पहुँचते पहुँचते इतनी शान्त कि शब्द भी विस्मृत हो गये...हो गयी सुशील भी...और मिले खिताब शांत और सुशील!
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी।
हृदय से आभार आदरणीय सुधा जी।
Deleteसादर