" व्यवस्था से अपरिचित हो? परिवर्तन का चक्का चाक नहीं है कि चाहे जब घुमा दो!” कहते हुए- रुग्ण मनोवृत्ति द्वेष के अंगारों पर लेट गई।
बड़े तबके के मॉल हो या छोटी-बड़ी दुकानें दरवाज़े के बाहर चप्पलें व्यवस्थित करने का ज़िम्मा इसी मनोवृति का है। भेद-भाव भरी निगाहों से एक-एक चप्पल का गहराई से अवलोकन करना फिर दिन व दिनांक का टोकन नाम सहित फला-फला व्यक्ति विशेष के हाथों में थमाना।
"ठीक ! तुम कुछ दिनों बाद आना।” कहते हुए, रुग्ण मनोवृति वहाँ से चली गई।
विभा को मिले टोकन पर दिन व दिनांक निर्धारित नहीं है उसने अक्ल के घोड़े दौड़ाए परंतु वह समय से पिछड़ चुकी है।
विभा के साथ उम्मीद में हाथ बाँधे खड़ी चार आँखों ने , एक ही वाक्य दोहराया।
”एक बार और बात करके देखो, बस आख़िरी बार; फिर घर के लिए निकलते हैं।”
उन आँखें ने हृदय से फिसलते सपनों को सँभाला, फिर अगले ही पल तितर-बितर बिखरी लालसाओं को समेटने में व्यस्त हो गई।
अंततः घूरने लगीं विभा के हाथों में जकड़े सिफ़ारिश के छोटे से वॉलेट को जिसका उपयोग उनके लिए निषेध था।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बढियां
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 4 जुलाई 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदय से आभार दी मंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
बहुत गहरा अर्थ संजोए रचना🌷🌷
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका 🌹
Deleteगहराई
ReplyDeleteजल्द समझ में नहीं आती
सादर
मैं समझ सकती हुँ दी आप आए बड़ा अच्छा लगा।
Deleteहृदय से आभार
सुन्दर व गहरी लघुकथा
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका।
Deleteसादर
गहन भावों को प्रतीकों के माध्यम से प्रतिबिंबित करती अप्रतिम लघुकथा ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका मीना दी।
Deleteसादर स्नेह
धारदार अभिव्यक्ति, वाह!
Deleteहृदय से आभार सर।
Deleteआप सब गुणीजन ने इस लघुकथा की गहराई को नापा और समझा भी होगा । मैं भी इसमें कई बार उतरने का प्रयास कर चुकी हूँ । जहाँ तक मुझे समझ आया है ये कहीं नौकरी के लिए साक्षात्कार के समय को ले कर इस कथा का ताना बाना बुना गया है ।
ReplyDeleteविभा जिसके पास कोई सिफारिशी पत्र है लेकिन समय से न पहुँच पाने के कारण वो पीछे रह गयी और दूसरी ओर कोई कुंठित मनोवृति वाला इंसान विभा के प्रति ईर्ष्या करते हुए सोच रहा है कि काश उसके पास ये सिफारिशी पत्र होता ।
अनिता से मेरी गुज़ारिश है कि इस कथा के कथ्य से हमें रु ब रु कराए । इसका थीम समझने में आसानी होगी ।
सादर नमस्कार दी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा आपने लघुकथा को इतने मन से पढ़ा, आपका स्नेह देख हृदय भर आया।
समझ नहीं आ रहा कौनसी घटना को पकडूँ, गाहे -बगाहे ऐसा कुछ घट ही जाता है जिसकी हम उम्मीद नहीं करते, पग-पग पर ऐसी रुग्ण मनोवृत्ति मिल जाती हैं जो स्त्री से उसका स्वाभिमान छीनती हैं। ऊंच नीच अमीर गरीब सभी पायदान बिछाए जाते हैं। मायने यह रखता की आप कौनसे पायदान पर पैर रखकर आगे बढ़ते हैं।
मैं अपनी बात नहीं कर रही, प्रत्येक वह औरत जिसके आगे कोई ढाल नहीं जो स्त्री और पुरुष दिनों का दायित्व भार वहन करती है इनमे से कुछ उनके मन चाहे सांचे में ढल जाती है परंतु जो नहीं ढलती वह नहीं ढलती उसमें उनका क्या दोष उन्हें भी जीने दो।
बस ऐसे ही एक घटना से यह ताना बाना बुना।
आपने जैसे कहा वैसे भी कह सकते हैं।
मासूम व लाचार आँखें हैं जो विभा जैसी हल्की सी सक्षम औरत से उम्मीद लगा बैठती हैं या चाहती हैं काश आज वो भी इस पायदान पर होती।वहीं विभा के पास ऐसी सिफारिश है जो सिर्फ़ उसी के लिए है बाक़ी कोई उसका उपयोग नहीं कर सकता। आप कह सकते हैं जैसे हम आर्मी वालों की वाइफ को कुछ राइट है जो सिर्फ़ हमारव लिए ही बने हैं बाक़ी औरतों को वह अधिकार मान्य नहीं हैं।
कृपया 'हमारव' को 'हमारे' पढ़े।
Deleteआर्मी वालों की वाइफ को कुछ राइट है जो सिर्फ़ हमारव लिए ही बने हैं बाक़ी औरतों को वह अधिकार मान्य नहीं हैं।
ReplyDeleteये बात आम सिविलियन्स को नहीं पता होते । मुझे भी विशेष जानकारी नहीं थी । इसे समझाने के लिए आभार । कथा के मर्म तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद ।
हम तो दूर दूर तक कथा की परिधि का भी स्पर्श नहीं कर पाए। मर्म समझाने का आभार।
ReplyDeleteआप आए बहुत अच्छा लगा, कभी कभी हम जो कहना चाहते है शायद स्पष्ट रूप से पाठक टक नहीं पहुंचा पाते या भावों में उलझ कर रह जाते हैं।
Deleteआप यों ही मार्गदर्शन करते रहें।
सादर
सुंदर लघुकथा ।
ReplyDeleteहृदय से आभार।
Deleteअर्थ स्पष्ट होते ही लघुकथा में निहित गहन संदेश
ReplyDeleteस्पष्ट हो गया।
बहुत अच्छी लघुकथा।
जी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
अनीता, इमानदारी से कहूं तो मुझे यह कहानी तब समझ में आई जब तुमने संगीता जी की प्रतिक्रिया के उत्तर में इसकी व्याख्या की.
ReplyDeleteऐसी कहानियां मेरे जैसे आम पाठकों के पल्ले ज़रा कम ही पड़ती हैं.
उंच-नीच, गोरा-काला, शहरी-ग्रामीण, इंग्लिश मीडियम-हिंदी मीडियम, अमीर-गरीब और मर्द-औरत का भेद-भाव तो कम होने के बजाय अब बढ़ता ही जा रहा है.
सुप्रभात सर।
Deleteअब अगर आप ही इस विषय को नहीं समझ पाए तब विचारणीय है परंतु मैं इस विषय को इससे अधिक सरलता से नहीं कह पाई यह मेरी विफलता है। भेद भाव भरा समाज है परंतु में सिर्फ़ और सिर्फ़ इससे उपजी रुग्ण मनोवृत्ति की ओर इसरा करना चाहती थी।
पता नहीं क्यों मुझे बड़ा सहज सा विषय लगा कोई एक नहीं पग-पग पर घटती घटना लगी।
आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-07-2022) को चर्चा मंच "शुरू हुआ चौमास" (चर्चा अंक-4482) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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मंच पर स्थान देने हेतु हृदय से आभार सर।
Deleteसादर
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण लघु कथा
ReplyDeleteहृदय आभार अनुज।
Deleteसादर
अनिता दी, पहले मुझे भी लघुकथा का अर्थ समझ मे नहीं आया था। लेकिन टिप्पणियां पढ़ने के बाद... बहुत सुंदर लघुकथा है दी।
ReplyDeleteजी ज्योति बहन! शायद गलत विषय को स्पर्श कर लिया।
Deleteहृदय से आभार।
सादर
बहुत सुंदर लघुकथा सखी।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार सखी।
Deleteसादर
बहुत सुन्दर लघुकथा
ReplyDeleteबस अंतिम पंक्ति... सिफ़ारिश के छोटे से वॉलेट को जिसका उपयोग उसके/ उनके लिए निषेध है।
उसके की जगह उनके लिए करने पर शायद भाव कुछ और स्पष्ट हों ।
जी अवश्य, मार्गदर्शन करने हेतु हृदय से आभार।
Deleteसादर स्नेह
गहन अर्थ समेटे सामायिक परिस्थितियों पर गहरे तक प्रश्न छोड़ती लघु कथा।
ReplyDeleteविशिष्ट रुतबों के आगे प्रतिभा को देखने वाला कोई नहीं प्रतिभाएं कतार में खड़ी रहती हैं और विशिष्टता कुर्सी पर बैठी रहती है शान से
और कुछ संवेदनाएं इस व्यथा को समझती हैं
और स्वयं को भी दोषी समझने लगती है ,पर सच कहूँ तो इस देश में कुछ भी बदलना बहुत मुश्किल है।
भ्रष्टाचार हर रूप में बढ़ता जा रहा है।कम होने का तो नाम ही नहीं।
हृदय से आभार प्रिय कुसुम दी जी।
Deleteसुकून मिलता है कि हम उन कतार में खड़ी प्रतिभाओं को प्रतिभा कह उनके साथ खड़े हैं। यह भी उनको एक सम्मान होगा वह इसी सहारे अंकुरित होती रहगी दम तो नहीं तोड़ेगी। आख़िर सभी को सम्मान से जीने का हक है।
सच आपकी मार्मिक प्रतिक्रिया से हृदय द्रवित हो गया।
हृदय से अनेकानेक आभार।
सादर प्रणाम