Sunday, 3 July 2022

वॉलेट


         " व्यवस्था से अपरिचित हो? परिवर्तन का चक्का चाक नहीं है कि चाहे जब घुमा दो!” कहते हुए- रुग्ण मनोवृत्ति द्वेष के अंगारों पर लेट गई।

  बड़े तबके के मॉल हो या छोटी-बड़ी दुकानें दरवाज़े के बाहर चप्पलें व्यवस्थित करने का ज़िम्मा इसी मनोवृति का है। भेद-भाव भरी निगाहों से एक-एक चप्पल का गहराई से अवलोकन करना फिर दिन व दिनांक का टोकन नाम सहित फला-फला व्यक्ति विशेष के हाथों में थमाना।

"ठीक ! तुम कुछ दिनों बाद आना।” कहते हुए, रुग्ण मनोवृति वहाँ से चली गई।

 विभा को मिले टोकन पर दिन व दिनांक निर्धारित नहीं है उसने अक्ल के घोड़े दौड़ाए परंतु वह समय से पिछड़ चुकी है।

विभा के साथ उम्मीद में हाथ बाँधे खड़ी चार आँखों ने ,  एक ही वाक्य दोहराया।

”एक बार और बात करके देखो, बस आख़िरी बार; फिर घर के लिए निकलते हैं।”

उन आँखें ने हृदय से फिसलते सपनों को सँभाला, फिर अगले ही पल तितर-बितर बिखरी लालसाओं को समेटने में व्यस्त हो गई।

अंततः घूरने लगीं विभा के हाथों में जकड़े सिफ़ारिश के छोटे से वॉलेट को जिसका उपयोग उनके लिए निषेध था।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

38 comments:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 4 जुलाई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. हृदय से आभार दी मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  2. डॉ विभा नायक3 July 2022 at 20:58

    बहुत गहरा अर्थ संजोए रचना🌷🌷

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  3. गहराई
    जल्द समझ में नहीं आती
    सादर

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    1. मैं समझ सकती हुँ दी आप आए बड़ा अच्छा लगा।
      हृदय से आभार

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  4. सुन्दर व गहरी लघुकथा

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    1. हृदय से आभार आपका।
      सादर

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  5. गहन भावों को प्रतीकों के माध्यम से प्रतिबिंबित करती अप्रतिम लघुकथा ।

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    1. हार्दिक आभार आपका मीना दी।
      सादर स्नेह

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    2. धारदार अभिव्यक्ति, वाह!

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    3. हृदय से आभार सर।

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  6. आप सब गुणीजन ने इस लघुकथा की गहराई को नापा और समझा भी होगा । मैं भी इसमें कई बार उतरने का प्रयास कर चुकी हूँ । जहाँ तक मुझे समझ आया है ये कहीं नौकरी के लिए साक्षात्कार के समय को ले कर इस कथा का ताना बाना बुना गया है ।
    विभा जिसके पास कोई सिफारिशी पत्र है लेकिन समय से न पहुँच पाने के कारण वो पीछे रह गयी और दूसरी ओर कोई कुंठित मनोवृति वाला इंसान विभा के प्रति ईर्ष्या करते हुए सोच रहा है कि काश उसके पास ये सिफारिशी पत्र होता ।
    अनिता से मेरी गुज़ारिश है कि इस कथा के कथ्य से हमें रु ब रु कराए । इसका थीम समझने में आसानी होगी ।

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  7. सादर नमस्कार दी।
    बहुत बढ़िया लगा आपने लघुकथा को इतने मन से पढ़ा, आपका स्नेह देख हृदय भर आया।
    समझ नहीं आ रहा कौनसी घटना को पकडूँ, गाहे -बगाहे ऐसा कुछ घट ही जाता है जिसकी हम उम्मीद नहीं करते, पग-पग पर ऐसी रुग्ण मनोवृत्ति मिल जाती हैं जो स्त्री से उसका स्वाभिमान छीनती हैं। ऊंच नीच अमीर गरीब सभी पायदान बिछाए जाते हैं। मायने यह रखता की आप कौनसे पायदान पर पैर रखकर आगे बढ़ते हैं।
    मैं अपनी बात नहीं कर रही, प्रत्येक वह औरत जिसके आगे कोई ढाल नहीं जो स्त्री और पुरुष दिनों का दायित्व भार वहन करती है इनमे से कुछ उनके मन चाहे सांचे में ढल जाती है परंतु जो नहीं ढलती वह नहीं ढलती उसमें उनका क्या दोष उन्हें भी जीने दो।
    बस ऐसे ही एक घटना से यह ताना बाना बुना।
    आपने जैसे कहा वैसे भी कह सकते हैं।
    मासूम व लाचार आँखें हैं जो विभा जैसी हल्की सी सक्षम औरत से उम्मीद लगा बैठती हैं या चाहती हैं काश आज वो भी इस पायदान पर होती।वहीं विभा के पास ऐसी सिफारिश है जो सिर्फ़ उसी के लिए है बाक़ी कोई उसका उपयोग नहीं कर सकता। आप कह सकते हैं जैसे हम आर्मी वालों की वाइफ को कुछ राइट है जो सिर्फ़ हमारव लिए ही बने हैं बाक़ी औरतों को वह अधिकार मान्य नहीं हैं।

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    1. कृपया 'हमारव' को 'हमारे' पढ़े।

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  8. आर्मी वालों की वाइफ को कुछ राइट है जो सिर्फ़ हमारव लिए ही बने हैं बाक़ी औरतों को वह अधिकार मान्य नहीं हैं।
    ये बात आम सिविलियन्स को नहीं पता होते । मुझे भी विशेष जानकारी नहीं थी । इसे समझाने के लिए आभार । कथा के मर्म तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद ।

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  9. हम तो दूर दूर तक कथा की परिधि का भी स्पर्श नहीं कर पाए। मर्म समझाने का आभार।

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    1. आप आए बहुत अच्छा लगा, कभी कभी हम जो कहना चाहते है शायद स्पष्ट रूप से पाठक टक नहीं पहुंचा पाते या भावों में उलझ कर रह जाते हैं।
      आप यों ही मार्गदर्शन करते रहें।
      सादर

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  10. अर्थ स्पष्ट होते ही लघुकथा में निहित गहन संदेश
    स्पष्ट हो गया।
    बहुत अच्छी लघुकथा।

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    1. जी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  11. अनीता, इमानदारी से कहूं तो मुझे यह कहानी तब समझ में आई जब तुमने संगीता जी की प्रतिक्रिया के उत्तर में इसकी व्याख्या की.
    ऐसी कहानियां मेरे जैसे आम पाठकों के पल्ले ज़रा कम ही पड़ती हैं.
    उंच-नीच, गोरा-काला, शहरी-ग्रामीण, इंग्लिश मीडियम-हिंदी मीडियम, अमीर-गरीब और मर्द-औरत का भेद-भाव तो कम होने के बजाय अब बढ़ता ही जा रहा है.

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    1. सुप्रभात सर।
      अब अगर आप ही इस विषय को नहीं समझ पाए तब विचारणीय है परंतु मैं इस विषय को इससे अधिक सरलता से नहीं कह पाई यह मेरी विफलता है। भेद भाव भरा समाज है परंतु में सिर्फ़ और सिर्फ़ इससे उपजी रुग्ण मनोवृत्ति की ओर इसरा करना चाहती थी।
      पता नहीं क्यों मुझे बड़ा सहज सा विषय लगा कोई एक नहीं पग-पग पर घटती घटना लगी।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

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  12. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-07-2022) को चर्चा मंच         "शुरू हुआ चौमास"  (चर्चा अंक-4482)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
    --

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    1. मंच पर स्थान देने हेतु हृदय से आभार सर।
      सादर

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  13. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण लघु कथा

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    1. हृदय आभार अनुज।
      सादर

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  14. अनिता दी, पहले मुझे भी लघुकथा का अर्थ समझ मे नहीं आया था। लेकिन टिप्पणियां पढ़ने के बाद... बहुत सुंदर लघुकथा है दी।

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    1. जी ज्योति बहन! शायद गलत विषय को स्पर्श कर लिया।
      हृदय से आभार।
      सादर

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  15. बहुत सुंदर लघुकथा सखी।

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    1. जी हृदय से आभार सखी।
      सादर

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  16. बहुत सुन्दर लघुकथा
    बस अंतिम पंक्ति... सिफ़ारिश के छोटे से वॉलेट को जिसका उपयोग उसके/ उनके लिए निषेध है।
    उसके की जगह उनके लिए करने पर शायद भाव कुछ और स्पष्ट हों ।

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    1. जी अवश्य, मार्गदर्शन करने हेतु हृदय से आभार।
      सादर स्नेह

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  17. गहन अर्थ समेटे सामायिक परिस्थितियों पर गहरे तक प्रश्न छोड़ती लघु कथा।
    विशिष्ट रुतबों के आगे प्रतिभा को देखने वाला कोई नहीं प्रतिभाएं कतार में खड़ी रहती हैं और विशिष्टता कुर्सी पर बैठी रहती है शान से
    और कुछ संवेदनाएं इस व्यथा को समझती हैं
    और स्वयं को भी दोषी समझने लगती है ,पर सच कहूँ तो इस देश में कुछ भी बदलना बहुत मुश्किल है‌।
    भ्रष्टाचार हर रूप में बढ़ता जा रहा है।कम होने का तो नाम ही नहीं।

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    1. हृदय से आभार प्रिय कुसुम दी जी।
      सुकून मिलता है कि हम उन कतार में खड़ी प्रतिभाओं को प्रतिभा कह उनके साथ खड़े हैं। यह भी उनको एक सम्मान होगा वह इसी सहारे अंकुरित होती रहगी दम तो नहीं तोड़ेगी। आख़िर सभी को सम्मान से जीने का हक है।
      सच आपकी मार्मिक प्रतिक्रिया से हृदय द्रवित हो गया।
      हृदय से अनेकानेक आभार।
      सादर प्रणाम

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