”पिता का हाथ छूटने पर भाई ने कलाई छोड़ दी और पति का साथ छूटने पर बेटे ने…।” कहते हुए बालों को सहलाती सावित्री बुआ की उँगलियाँ सर पर कथा लिखने लगी थी। अर्द्ध-विराम तो कहीं पूर्ण-विराम और कहीं प्प्रश्न-चिह्न पर ठहर जातीं। बुआ के विश्वास का सेतु टूटने पर शब्द सांसों के भँवर में डूबते परंतु उनमें संवेदना हिलकोरे मारती रही थी।
बाल और न उलझें इस पर राधिका ने एक नज़र सावित्री बुआ पर डालते हुए कहा-
”बाल उलझते हैं बुआ!”
" क्या करती हो दिनभर,बाल सूखे हाथ-पैर सूखे; कब सीखेगी अपना ख़याल रखना?" कहते हुए झुँझलाहट ने शब्दों के सारे प्रवाह तोड़ दिए, अब सावित्री बुआ के भाव शब्दों में उतर पहेलियाँ गढ़ने में व्यस्त हो गए।
” समर्पण दोष नहीं, आपका स्वभाव ही ममतामयी है।”
राधिका ने पलटकर बुआ के घुटनों पर ठुड्डी टिकाते हुए कहा।
"और उनका क्या ? उनका हृदय करुणामय नहीं…?”
माथे से टपकती पसीने की बूंदो में समाहित कई प्रश्न उत्तर की तलाश में भटक रहे थे राधिका को लगा यह कथा नहीं उपन्यास के बिछड़े किरदारों की पीड़ा थी जो उँगलियों के सहारे सर में डग भर रही थी।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहृदय से आभार सर।
Deleteसादर
वाह, उजास रा पांवडा भरता नेह रा भाव हबोळा खाय रैया है. आछो रचाव. कलम सवाई चालती रैवै.
ReplyDeleteआशीष भरे शब्द हृदय सुकून से भर गया। अनेकानेक आभार आदरणीय सर।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर प्रणाम
निशब्द
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-7-22) को सोशल मीडिया की रेशमी अंधियारे पक्ष वाली सुरंग" (चर्चा अंक 4488) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
गहन भाव लिए हृदय स्पर्शी लघुकथा।
ReplyDeleteसुंदर हर बार की तरह।
बहुत सुंदर आदरणीय ।
ReplyDeleteसराहनीय हृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteउलझे हैं रिश्तों के मंझे... मर्मस्पर्शी...👍
ReplyDeleteदिल को छूने वाली सुंदर कहानी
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा ।
ReplyDeleteवाह!!!